‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ से किसी का भला नहीं

‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ से किसी का भला नहीं

बीजिंग, | अभी भी पूरी दुनिया में कोरोनावायरस का कहर बना हुआ है, और मानव जाति के जीवन और स्वास्थ्य को खतरा है। इसके लिए जरूरी है कि सभी देशों के लोगों को समय पर कोविड-19 रोधी टीका लगाया जाए। लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में, कुछ देशों में ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ की भावना बढ़ रही है। कुछ उच्च-आय वाले देश कोविड-19 टीकों की जमाखोरी कर रहे हैं, जबकि कई कम-आय वाले देश कोरोना-रोधी टीकों की पहुंच से वंचित हैं।

‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ मुख्य रूप से इस तथ्य को संदर्भित करता है कि कुछ उच्च-आय वाले देशों की सरकारों ने दवा निर्माताओं के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये कंपनियां अन्य देशों के लिए टीके प्रदान करने से पहले अपनी आबादी को पहले टीके की आपूर्ति करेंगी।

मामलों को बदतर बनाने के लिए कुछ पश्चिमी मीडिया ने ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का बचाव करने और वैश्विक महामारी-रोधी सहयोग में बाधा डालने की कोशिश की है। सच्चाई यह है कि इन उच्च-आय वाले देशों ने अपनी आबादी के हिसाब से जरूरत से ज्यादा टीकों का ऑर्डर दिया है, जिसके कारण न केवल इन देशों में टीकों की अतिरिक्त संख्या होगी, बल्कि कई गरीब और मध्यम आय वाले देशों को समय पर टीके नहीं मिल पाने की स्थिति बनी रहेगी।

इस समय दुनिया कोविड-19 टीकों के वितरण में एक भयावह नैतिक विफलता के कगार पर खड़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. ट्रेडोस ने जनवरी में डब्ल्यूएचओ कार्यकारी बोर्ड के 148वें सत्र की उद्घाटन बैठक में कहा, “कम से कम 49 उच्च-आय वाले देशों में अब 3.9 करोड़ से अधिक टीके लगाए गए हैं। एक न्यूनतम आय वाले देश में सिर्फ 25 खुराक दी गई हैं। 2.5 करोड़ नहीं; 25 हजार भी नहीं; सिर्फ 25।”

दरअसल, ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’, ‘पहले मैं’ वाली मानसिकता के लोगों द्वारा फैलाया जा रहा है, जिससे किसी का भी भला नहीं होगा। एक वर्ष से अधिक समय तक चली महामारी ने दुनिया को सिखाया है कि सभी देशों में लोगों का जीवन और स्वास्थ्य कभी भी इतना निकटता से जुड़ा नहीं है जितना कि आज है। वायरस मानव जाति का सामान शत्रु है, और इसे हराने का एकमात्र तरीका एकजुटता और सहयोग है।

यदि कुछ उच्च-आय वाले देश कोविड-19 टीकों की आंखें मूंद कर जमाखोरी करते हैं, और गरीब देशों को टीकों का उपयोग या उपयोग करने में असमर्थ बनाते हैं, तो वायरस दुनिया भर में फैलता रहेगा, और यह उच्च-आय वाले देशों सहित सभी के लिए महामारी को हराना अधिक कठिन हो जाएगा।

जाहिर है, ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ कोविड-19 महामारी को समाप्त करने में प्रगति को धीमा कर सकता है और सभी देशों के लिए आर्थिक विकास को नष्ट कर सकता है। टीके वायरस के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार हैं और जीवन बचाने के लिए उम्मीद जगाते हैं। उन्हें पूरी दुनिया की सेवा करनी चाहिए और पूरी मानवता को लाभ पहुंचाना चाहिए।

न्यायसंगत टीका वितरण के लिए, चीन और भारत दोनों ने ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का विरोध करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। दोनों बड़े एशियाई देश डब्ल्यूएचओ के कोवाक्स योजना में शामिल हो चुके हैं, जिसके तहत उन्होंने विकासशील देशों में आपातकालीन उपयोग के लिए कोरोनो-रोधी टीके की खुराक देने का काम किया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग तो चीनी-र्निर्मित टीके को वैश्विक सार्वजनिक उत्पाद घोषित कर चुके हैं।

अब तक, चीन ने 69 विकासशील देशों को तत्काल आवश्यकता में कोविड-19 टीके दान में दिए हैं, और 43 देशों को टीके निर्यात किये हैं। वहीं, भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के तहत लगभग 71 देशों को भारत-निर्मित टीके की आपूर्ति की है। शुरूआत से ही, चीन और भारत मानते आ रहे हैं कि महामारी पूरी मानवता के लिए खतरा है और सामूहिक रूप से ही इसका निवारण किया जाना चाहिए।

यह समझना होगा कि मनुष्य एक वैश्विक गांव में रहते हैं, और सभी देश तेजी से एक दूसरे पर आश्रित हो रहे हैं और एक साझा भविष्य साझा करते हैं। केवल ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ को त्यागकर और प्रतिरक्षा अंतर को मिटाकर मानव जाति संयुक्त रूप से वायरस को हरा सकती है और एक सुंदर घर का निर्माण कर सकती है।

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