बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज, पहले दिया पिता के शव को कंधा फिर मुखाग्नि

बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज, पहले दिया पिता के शव को कंधा फिर मुखाग्नि

दमोह: जहां सरकारें बेटी पढाओं, बेटी बचाओं जैसे अभियान चलाकर बेटियों का महत्‍व बता रही हैं, वही दमोह जिले के हटा नगर के वरिष्‍ठ पत्रकार और हमेशा कुरीतियों के विरूद्ध अपनी आवाज़ उठाने वाले समाजसेवी रवीन्‍द्र अग्रवाल की मौत के बाद उनकी इकलौती बेटी ने ऐसी आदर्श पेश किया है जो आज के समय में सबके लिए नसीहत बन गई। सभी को देखकर कहना पड़ा है कि बेटी है तो कल है, बेटी किसी से कम नहीं। 

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जी हां हटा नगर के रहने वाले अखबार जगत से बीते ४५ सालों से नाता रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार समाज सेवी रवीन्‍द्र अग्रवाल बीते दो माह से गंभीर रूप से बीमार थे, बीमारी के दौरान उन्‍हे उनकी बेटी सारिका अग्रवाल जो माइक्रोबायोलाजी से पीएचडी कर रही पिता के गंभीर होने के बाद छात्रा सारिका अग्रवाल उच्‍च इलाज  के लिए जबलपुर ले गई जहां दो माह तक भूख प्‍यास नींद को दरकिनारे करते हुए दिनरात अपने पिता की सेवा की। इसी बीच रवीन्‍द्र अग्रवाल आखिरकार जिंदगी की जंग हार गए।

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उनका अंतिम संस्‍कार हटा में होना तय हुआ जहां सारिका ने समाज के बुजुर्गों और पंडितों से विचार विमर्श कर अंतिम संस्‍कार के सारे क्रियाकर्म स्‍वयं करने की इच्‍छा रखी पहले तो सब हैरत में पड़ गए लेकिन बेटी की इच्छा शक्ति देखकर सभी ने सहमती दे दी, बस फिर क्या आंखों में आंसू कांधे पर पिता का शव उठाये बहादुर बेटी ने अंतिम संस्‍कार के दौरान जो सारे कार्य बेटे के द्वारा किये जाते है उसे बेटी ने ही समाज और पंडितों के निर्देशन में पूरे किये।

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पिता की अंतिम यात्रा जब घर से प्रारंभ हुई तो कंधा भी दिया, श्‍मशान घाट पर जाकर, पिण्‍डदान, भी किया, मुखग्नि, जलचाप और तिलांजलि जैसे कार्य भी करायें जो एक जिम्मेदार बेटे का फर्ज होता है लेकिन यहां ये सब परंपराए एक बेटी ने निभाई। श्मशान में नम आंखों से बेटी सारिका अग्रवाल ने अपने पिता की चिता में अग्नि देकर बेटा होने का फर्ज कुछ इस तरह निभाया कि जिसने भी बेटी का साहस और हिम्मत देखी उसके मुंह से यही निकला मेरी भी बेटी हो तो सारिका जैसी।

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