भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन मे लाखो लोगो ने भाग लिया था। कई आन्दोलन ज्ञात है और कई अज्ञात है, जिनका उल्लेख इतिहास के पन्नो पर अभी तक नही हुआ हैं। ऐसा ही एक जन आन्दोलन राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेष की सीमा पर मानगढ मे 17 नवंबर 1913 को हुआ था। भारतीय इतिहास मे जलियांवाला बाग का नृषंस हत्याकाण्ड प्रसिद्ध है। उससे भी कुछ वर्ष पहले मानगढ. मे यह वीभत्स हत्याकाण्ड हुआ था। परन्तु अंग्रेज परस्त भारतीय इतिहासकारो ने इसे उपेक्षा की धूल से ढकने का प्रयास किया हैं। देश मे अंग्रेजो के आधिपत्य होने के बाद अंग्रेजो ने समाज को तोडने हेतु संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने के लिए जनता के बीच भ्रम फैलाने का कुचक्र प्रारम्भ किया था। जिससे सुदूर वनांचल भी नही छूटा था जिसके कारण मानगढ हत्याकाण्ड जैसे काण्ड का जन्म हुआ। अंग्रेजो के षासन से पूर्व वनांचल मे भील राजनैतिक व सामाजिक दृष्टि से स्वायतषासी थे उनकी न्याय व्यवस्था पंचायती ढंग से चलती थी। इस व्यवस्था से उनका जीवन सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से प्राय: आत्मनिर्भर था। अंग्रेजो का ध्यान जब इस ओर गया तब अंग्रेजो ने दण्ड नीति की व्यवस्था यहॉ लागू की जिससे लोग कंगाल होने लगे। अंग्रेजो के फरमाबरदार ओर कमीषन एंजेट बने देसी रियासतों के षासको ने अपने क्षेत्र मे बसने वाली प्रजा का उत्पीडन व षोषण प्रारम्भ कर दिया था। उनसे जबरन बेगार कराई जाती थी, फसल छीन ली जाती थी और उनके पषुओ को हांककर ले जाते थे। लोगो की बहन-बेटियो को सरेआम उठा लिया जाता था। अंग्रेज ओर उनके नुमाइंदे उन्मुक्त होकर उन निरीह वनवासियों पर हर प्रकार का अत्याचार करते थे। लोगो द्वारा विरोध करने पर हंटर या कोडो से पिटाई की जाती थी, भय पैदा करने के लिए जनता के सामने तलवार से गर्दन काट दी जाती थी तथा हाथ-पैर काट दिये जाते थे।
भय और आंतक का साया हमेषा सिर पर मंडराता रहता था लोग हर अत्याचार और अन्याय को विषघूंट की तरह पीने के लिए विवष थे। देसी रियासतें अंग्रेजो के अधीन थी और प्रजा राजा-महाराजाओ के अधीन परतन्त्रता की बेडियो मे जकडी दम तोड रही थी। उक्त परिस्थितियो मे स्वाभिमानी भीलो के मन मे आक्रोष उत्पन्न हो रहा था ओर किसी प्रकार वे इस षोषण उत्पीडन और पराधीनता से मुक्ति चाहते थे। उनके मनो मे इन बेडियो को झटक कर तोड डालने की सुगबुगाहट उत्पन्न हो चुकी थी।मानगढ. हत्याकाण्ड का जन्म इन्ही परिस्थितियो मे हुआ था। इन्ही परिस्थितियो ने इस क्षेत्र के गोविन्दगुरु के स्वाभिमानी हृदय को झकझोर दिया था। गोविन्दगुरु ने वनांचल क्षेत्र के लोगो को सर्वप्रथम षारीरिक और अध्यात्मिक उन्नति की षिक्षा देना प्रारम्भ किया। राग-द्वेष, कलह, हिंसा, स्वाथर्, अन्याय और अभाव आदि से समाज टूट जाता है,लोग संगठित नही होते ओर शक्ति बंट जाती है। सामाजिक उन्नति के लिए लोगो को इन सब बुराइयो से दूर रहने के लिए लोगो से उन्होने कहा।
गोविन्दगुरु ने लोगो से अपने श्रम से अर्जित धन का उपयोग करने खेती ओर मजदूरी के द्वारा अपनी विपन्नता को दूर करने तथा एकता स्थापित कर संगठित होने का आग्रहकिया।उन्होने कहा अदालत मे मत जाओ यही बैठकर आपस मे फैसला करो इन सब बातो को करने के लिए उन्होने हवन संत्सग कीर्तन करने की प्रथा चलाई। गॉव-2 मे सम्पसभा का गठन किया। इस प्रकार धार्मिक नैतिक और सामाजिक दृष्टि से लोगो का स्वाभिमान जगाने का कार्य किया और अंग्रेजो के अत्याचार अन्याय के विरुद्ध क्षेत्र मे आवाज उठाई। वनांचल की परिस्थिति ने गोविन्ददास को गोविन्दगुरु बना दिया। जनता अंग्रेजो द्वारा अन्याय षोषण अत्याचार का खुलकर विरोध करने लगी तथा भगत पंथ ओर सम्प सभा का विस्तार होने लगा। डूंगरग्राम के नवयुवक पूंजा भील भी अन्याय षोषण अत्याचार के विरोध मे अपने साथियो के साथ चर्चा करते थे। पूंजा ने क्षेत्र के नवयुवको के साथ एक दल बना रखा था। गोविन्दगुरु और पूंजा भील के साथ क्षेत्र के लोगो का मनोबल बढा और वे अधिक उत्साह से आन्दोलन मे भाग लेने लगे। इन सब गतिविधियो से अंग्रेज षासन ने समझौता करने की कोषिष की, कई भ्रम फैलाए और प्रलोभन दिए, राजस्व कम करने कि बात कही, बेगार नही कराई जाएगी आदी। मगर अंग्रेजो की कुटिलता के कारण ओर देषी राजाओ के कारण कोई बात नही बन पाई अंग्रेजो ने इसे विद्रोह करार दिया। आसोज सुदी पूर्णिमा को एक मेले का आयोजन मानगढ मे निष्चय किया गया। क्षेत्र के लोग अपना खाने-पीने का सामान लेकर मानगढ मेले मे जाने की तैयारियॉ करने लगे। इस हलचल की सूचना अंग्रेजो के पोलिटिकल एंजेटो ने बडोदा और अहमदाबाद कमिष्नर को भेजी कि विद्रोह बढता जा रहा है। नियंत्रण करना जरुरी है और अफवाहो का जोरदार दौर चला। अंग्रेज अधिकारी भी स्थिति पर निरन्तर नजर रखे हुए थे। जनरल आफोट कमाण्डिग अफसर पांचवी महू डिवीजन ने 6 नवबंर को सूचित किया कि भील नियंत्रण से बाहर हो गये है। वे बडी संख्या मे मानगढ पर एकत्र हो रहे है। सभा मे देष के कई सामाजिक और आर्थिक नेतागण भाग लेगें। अत: पैदल सेना की एक कम्पनी मषीनगनो के साथ तैयार रखे। साथ ही 104 रायफल की एक कम्पनी को भी तैयार रखे एडीजी राजपूताना ने तार द्वारा भारत सरकार का यह जानकारी दी कि स्थिति गम्भीर है।
अंग्रेजो के अधीन लगभग 10 सैनिक कम्पनियॉ मानगढ के आसपास वाले इलाको मे पहुॅच गई। इसके साथ ही देषी रियासतो के सैनिक दल भी वहॉ भेज दिए गए। एक बार ओर दोनो पक्षो से समझौता वार्ता चली मगर अंग्रेज की ओर से कोई ठोस आष्वासन ना मिलने के कारण बात नही बन पाई। भीलो के प्रतिनिधि मण्डल अंग्रेज अधिकारियो के आगे झुकने को तैयार नही थे 16 नवंबर को अन्तत: भारत सरकार ने अनुमति प्रदान कर दि कि मानगढ. को सैनिक कार्यवाही द्वारा खाली करवा दिया जाए। अंग्रेजो ने 17 नवबंर को रात 4 बजे मानगढ पर एकत्र लोगो पर मषीनगनो व तोपो से आक्रमण कर दिया। रात्रि को इस प्रकार अचानक आक्रमण के लिए लोग तैयार नही थे। फिर भी थोडी देर मे सब समझ गये और सुबह 10 बजे तक अंग्रेज सेना का सामना करते रहे। परन्तु परिष्कृत हथियारो के आगे भीलो के परम्परागत हथियार तीर कमान और टोपीदार बन्दूके बेअसर साबित हुई अंग्रेज सैनिको ने भारी नरसंहार किया। मारे जाने वालो की निष्चित संख्या पता नही मगर संभवत: 1500 से अधिक लोगो की मृत्यु हुई और लगभग 800 लोग घायल हुए थे। इतिहास की पुस्तक मे इस संख्या का उल्लेख हैै। गुरु गोविन्द ओर पूंजा भील का साथियो सहित अहमदाबाद जेल भेज दिया गया। 1500 भील अपने धर्म,संस्कृति,स्वाभिमान के लिए बलिदान हो गये क्रुर अंग्रेजो ने रात्रि को सोये हुए भीलो पर आक्रमण किया। उनका दोष केवल इतना था की वह चर्च के इषारे से न चलकर अपने संत्सग हवन आदी धार्मिक परम्पराओ से अपना जीवन चलाते थे।
भगवतशरण माथुर
(राष्ट्रीय संगठक अजा/अजजा मोर्चा
एवं सहकारिता प्रकोष्ठ)