पति की अनुमति के बिना बार-बार मायके जाना ‘परित्याग’ का अपराध नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

पति की अनुमति के बिना बार-बार मायके जाना ‘परित्याग’ का अपराध नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

प्रयागराजः पति और उसके परिवार की अनुमति के बिना पत्नी अगर अपने मायके जाती है तो यह न तो परित्याग का अपराध बन सकता है और न ही यह क्रूरता की श्रेणी में आएगा। यह टिप्पणी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी है। याचिका में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें इस आधार पर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री दी गई थी, कि महिला पति और ससुराल पक्ष की अनुमति के बिना अपने मायके चली जाती थी।

दरअसल अपील करने वाली महिला मोहित प्रीत कपूर और प्रतिवादी सुमित कपूर ने साल 2013 में शादी की थी। साल 2017 में पति ने इस आधार पर तलाक की याचिका दाखिल की थी कि अपीलकर्ता यानी कि उसकी पत्नी बिना किसी कारण के उसकी अनुपस्थिति में अपना ससुराल का घर छोड़ दिया था। इतना ही नहीं, महिला ने अपने पति के घर वापस आने से भी इनकार कर दिया था। अपनी याचिका में पति ने यह भी कहा था कि महिला ने घर का काम करने से मना कर दिया था और उसके परिवार के लोगों के साथ बदसलूकी की है।

इस बीच पत्नी ने भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आवेदन दाखिल कर पति से भरण-पोषण दिलाने की मांग की थी। कोर्ट ने पत्नी के आवेदन को स्वीकार कर लिया था और पति को आदेश दिया था कि वह महिला को 5 हजार रुपये और उसकी बेटी को 2 हजार रुपये मासिक भरण-पोषण भत्ता दे। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के आचरण से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि महिला ने पति की अनुपस्थिति में अपने ससुराल को छोड़कर स्थायी रूप से उसके साथ रहने के इरादे का त्याग कर यह फैसला लिया था।

कोर्ट ने कहा कि महिला गर्भवती थी और 400 मीटर की दूरी पर स्थित अपने मायके कुछ ही दिनों के लिए गई हो सकती है। इस प्रकार से अपीलकर्ता का बिना अनुमति के अपने मायके जाने के काम को उसकी ओर से पति के परित्याग का अपराध नहीं माना जा सकता। इसके अलावा यह क्रूरता का भी अपराध नहीं है। इतना ही नहीं कोर्ट ने प्रतिवादी पति को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने तथा उसके वकील ने कभी भी इस कार्यवाही में भाग नहीं लिया, जिससे जाहिर होता है कि वह अपनी नाबालिग बच्ची की जिम्मेदारियों से भागना चाहता है।

इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें पति के पक्ष में तलाक की डिक्री दी गई थी। साथ ही कोर्ट ने पति को निर्देश दिया है कि वह बेटी के भरण पोषण के लिए प्रति माह 30 हजार रुपये का भुगतान करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

English Website