बुंदेलखंड के ‘अधांव’ गांव के लोगों ने लिखी जल संरक्षण की नई इबारत

बुंदेलखंड के ‘अधांव’ गांव के लोगों ने लिखी जल संरक्षण की नई इबारत

छतरपुर/बांदा। बुंदेलखंड की पहचान किसी दौर में पानीदार इलाके के तौर पर हुआ करती थी लेकिन हालात ऐसे बदले कि यह इलाका बेपानी हो गया। वर्तमान में इस इलाके की पहचान सूखा, भुखमरी, पलायन और बेरोजगारी के कारण है। हालांकि, कई लोग ऐसे है जो इस कलंक को मिटाने में लगे हैं। बांदा जिले का अधांव गांव भी एक मिसाल बन गया है, जहां गांव के लोगों ने एकजुट होकर खेत का पानी खेत में गांव का पानी गांव में और खेत पर मेड अभियान चला रखा है। उनके अभियान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके मुरीद हो गए हैं।

बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 14 जिलों केा मिलाकर बनता है। इनमें से मध्य प्रदेश के सागर , छतरपुर , पन्ना , टीकमगढ़, निवाड़ी, दमोह व दतिया आते हैं जबकि उत्तर प्रदेश का चित्रकूट , हमीरपुर , बांदा , महोबा , झांसी, ललितपुर, जालौन सात जिले आते है। यहां के अधिकांश हिस्सों में सूखा आम हो चला है। दोनों राज्यों की सरकारें येाजनाएं बनाती है, विभिन्न रास्तों सरकारी और गैर सरकारी माध्यम से बड़ी रकम हर साल आती है, मगर हालात नहीं सुधर रहे। राज्य सरकार और किसी भी एजेंसी से मदद नहीं मिली तो समाज ने बीड़ा उठाया। इस कोशिश से वहां की तस्वीर ही बदल गई। यही कहानी अधांव गांव की है ।

अधांव गांव का हाल भी बुंदेलखंड के अन्य गांव जैसा हुआ करता था । इस गांव के खेतों में मेड़ बनाकर बरसात के पानी के संग्रहण के लिए काम किया । गांव वालों ने जल संरक्षण हेतु खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में के तहत खेत पर मेड़, मेड पर पेड़ कुल मिलाकर मेड़बंदी करवा दी है। इस मेड बंदी से खेत का पानी खेत में रहता है और पानी होने की वजह से किसान धान तक की खेती करने की स्थिति में आ गए है।

इस गांव में पानी के संरक्षण के लिए चलाई गई मुहिम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रामबाबू तिवारी अहम भूमिका निभाई। उन्हें गांव के लोगों का भरपूर साथ मिला। उनका कहना है कि विगत 2014 से पानी चैपाल, पानी पंचायत का आयोजन गांव में किया जाता रहा है। छोटे-छोटे प्रयास किए जाते रहे, जिससे जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण और संवर्धन को अमली जामा पहनाया जा सके। पानी चैपाल में गांव के लोगों ने फैसला लिया कि गांव का पानी गांव में रोकने के लिए खेत पर मेड बनाई जाए और खेत का पानी खेत में ही रखा जाए । इसके लिए साल 2017-18, और साल 2018-19 में यहां के किसानों ने व्यापक स्तर पर गांव के किसानों ने अपनी पूंजी से एवं कुछ ग्राम पंचायत निधि से अपने खेतों पर मेड बनवाने का कार्य किया। इस वजह से जो किसान अभी तक एक फसल उपज लेते थे, मेड़बंदी के उपरांत दो फसल लेने लगे हैं।

इस अभियान को समाज के साथ संतों का भी भरपूर साथ मिला है। चित्रकूट के कामतानाथ मुख्य द्वार के महंत स्वामी मदन गोपाल दास का भी इस अभियान को साथ मिला। उन्होंने गांव के लोगों के बीच जाकर जनचेतना जगाने में कसर नहीं छोड़ी।

गांव के लोगों के प्रयास से बदली तस्वीर की चर्चा हर तरफ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस गांव की पानी बचाने की मुहिम की चर्चा की। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस मुहिम से गांव के लोगों को पानी, पेड़ और पैसा तीनों मिलेंगे।

गांव के हर व्यक्ति में पानी के संरक्षण और संवर्धन की ललक है। यही कारण है कि बजरंगबली आश्रम प्रकृति केंद्र आश्रम में पानी चैपाल का आयोजन प्रति माह किया जाता है। इससे गांव वाले मिलकर चर्चा करते हैं फिर गांव में पानी संरक्षण को लेकर अभियान को आगे बढ़ाने की रणनीति बनती हैं। यहां हर साल तालाब महोत्सव भी मनाया जाता है।

बुंदेलखंड के जानकार रवींद्र व्यास का कहना है, ” इस इलाके को हमेशा छला गया है। कभी सरकारों ने तो कभी पानी के संकट को उत्सव मानने वालों ने। यही कारण है कि बुंदेलखंड पैकेज में सात करोड़ से ज्यादा की रकम आई। इसके अलावा हर साल इस क्षेत्र के लिए सरकारी और गैर सरकारी माध्यमों से रकम आती है, मगर किसी भी क्षेत्र की समस्या का समाधान नहीं होता। सवाल उठता है कि गांव के लोग जब अपने प्रयास से तालाब बना सकते है, जल संरक्षण कर सकते हैं, तो करोड़ की मद हासिल करने वाले ऐसा क्यों नहीं करते? हां लूट में हिस्सेदारी के लिए जरुर तैयार रहने वालों की कमी नहीं है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

English Website