कर्नाटक हाईकोर्ट का कहना है कि जब तक पब्लिक प्लेस में दुर्व्यवहार नहीं हुआ तब तक एससीएसटी एक्ट लागू नहीं होगा। फैसले के बाद कोर्ट ने लंबित मामले को रद्द कर दिया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया गया था कि बेसमेंट में उसे जातिसूचक शब्द कहे गए थे। वहां उसके दोस्त भी मौजूद थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि बेसमेंट पब्लिक प्लेस नहीं होता।
शिकायतकर्ता मोहन को एक इमारत के बेसमेंट में जातिसूचक गालियां दी थीं। शिकायतकर्ता ने बयान में कहा कि वहां दूसरे मजदूर भी थे। इन सभी लोगों को इमारत के मालिक जयकुमार आर नायर ने काम पर रखा था।
जज एम नागप्रसन्ना ने 10 जून को इस मामले पर फैसला सुनाया था।
फैसला देते समय जज ने कहा कि बयानों को पढ़ने से दो चीजें पता चली हैं। पहली यह कि इमारत का बेसमेंट पब्लिक प्लेस नहीं था और दूसरी बात यह कि वहां शिकायतकर्ता, उनके दोस्त और अन्य कर्मचारी मौजूद थे।
जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल पब्लिक प्लेस में नहीं किया गया। ऐसे में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता, क्योंकि इसके लिए पब्लिक प्लेस में जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल होना जरूरी है।