नई दिल्ली: पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखने की भारत की रणनीति के परिणामस्वरूप वित्तवर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों के दौरान देश के तेल आयात बिल में लगभग 7.9 अरब डॉलर की बचत हुई है। इससे देश को चालू खाता घाटा कम करने में भी मदद मिली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार मॉस्को के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखने के लिए दृढ़ है।
व्यापार ट्रैकिंग एजेंसियों केप्लर और एलएसईजी द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, इस साल अप्रैल के दौरान भारत ने एक महीने पहले की तुलना में अधिक रूसी तेल का आयात किया, लेकिन इराक और सऊदी अरब से कम आयात किया।
आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल के दौरान आयात 13-17 प्रतिशत बढ़ गया।अप्रैल में रूस भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता रहा, उसके बाद इराक और सऊदी अरब रहे।
आंकड़ों से पता चलता है कि इराक से इसके तेल आयात में 20-23 प्रतिशत की गिरावट आई है।
चूंकि भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, रूसी तेल की इन बड़ी खरीद ने विश्व बाजार में कीमतों को अधिक उचित स्तर पर रखने में मदद की है, जिससे अन्य देशों को भी लाभ हुआ है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि मात्रा के संदर्भ में वित्तवर्ष 2024 के 11 महीनों में रूस से आयातित कच्चे पेट्रोलियम की हिस्सेदारी वित्तवर्ष 2022 में 2 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई, जबकि पश्चिम एशियाई देशों (सऊदी अरब) से संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत) 34 प्रतिशत से घटकर 23 प्रतिशत पर आ गया।