बीजिंग, | चीन लंबे समय से खुलेपन पर जोर देता रहा है। हाल में संपन्न हुए दो सत्रों में भी चीनी नेताओं व प्रतिनिधियों ने यह बात दोहरायी। अस्सी के दशक की शुरूआत में खुले द्वार की नीति लागू किए जाने के बाद न केवल चीन समृद्ध हुआ बल्कि दूसरे देशों को भी चीन के खुलेपन से लाभ हासिल हुआ। हालांकि कुछ देश वैश्वीकरण व बहुपक्षवाद के समर्थन में नहीं हैं, बावजूद इसके चीन बार-बार इस दिशा में आगे बढ़ने की बात करता है। पिछले दिनों चीन के शीर्ष वित्तीय नियामकों ने बल देते हुए कहा कि वित्तीय खुलेपन को प्रोत्साहन देते हुए जोखिम प्रबंधन को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें चीन-अमेरिका से जुड़ी कंपनियों के सूचीबद्ध ऑडिट नियमों को भी शामिल किया जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक मानकों के साथ घरेलू वित्तीय तरीकों को अधिक बारीकी से करने के लिए चीन के प्रयासों से विदेशी निवेशकों को अच्छे अवसर हासिल हो रहे हैं। हालांकि इस बारे में और कुछ काम करने की आवश्यकता जताई गयी है।
चीन के प्रमुख प्रतिभूति नियामक, चीन सिक्योरिटीज रेगुलेटरी कमिशन के अध्यक्ष यी ह्वेइमान के अनुसार चीन पूंजी बाजार की मजबूती जारी रखेगा। इसके साथ ही विदेशी कंपनियों के चीन में निवेश व स्थापना आदि को लेकर भी खुला रवैया अपनाया जाएगा।
चीनी प्रतिनिधियों के बयानों से स्पष्ट होता है कि तमाम गतिरोधों के बावजूद चीन अपनी विकास प्रक्रिया में विदेशी कंपनियों को भी जोड़कर रखना चाहता है। हालांकि चीन में आजकल देश के भीतर अर्थव्यवस्था के दोहरे चक्र की बात की जा रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चीन विदेशी निवेशकों के लिए दरवाजे बंद करने जा रहा है। चीन ने कई मंचों से कहा कि वह अपने देश की स्थिति के मुताबिक काम करते हुए विदेशी कंपनियों के भी अपने यहां आने का स्वागत करता है।
वहीं हाल के दिनों में कुछ पश्चिमी देश इस तरह के बयान जारी कर रहे हैं, जिसमें अपने देश को सबसे आगे रखने पर जोर दिया जा रहा है। कहना होगा कि हर देश के लिए अपने नागरिकों के हित सर्वोपरि होते हैं, पर वैश्विक जि़म्मेदारी से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। विशेषकर अमेरिका, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को भी इस बात का अहसास होना चाहिए। क्योंकि दुनिया एक वैश्विक गांव की तरह है, और विभिन्न देशों के हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।