नई दिल्ली, | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव के संबोधन में चीन को लेकर कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत की प्रतिक्रिया से पहली बार चीन सहम और ठिठक गया। उसकी गलतफहमी दूर हो गई। हालांकि, मोहन भागवत ने भारत को अब और अधिक सतर्क रहने का सुझाव देते हुए सामरिक और आर्थिक रूप से चीन से ज्यादा मजबूत बनने पर जोर दिया। मोहन भागवत ने वैश्विक महामारी में चीन की भूमिका भी संदिग्ध बताई। आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर से संबोधन में कहा, चीन ने सामरिक बल के गर्व में हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करने की कोशिश की। भारत ही नहीं उसने ताइवान, वियतनाम, अमेरिका और जापान के साथ भी झगड़ा मोल लिया। इस बार भारत ने जो प्रतिक्रिया दी, उसके कारण वो सहम गया, उसे धक्का मिला। क्योंकि भारत तन कर खड़ा हो गया। सेना ने वीरता का परिचय दिया, नागरिकों ने देशभक्ति का परिचय दिया। सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से वह ठिठक जाए, इतना धक्का तो उसे मिला। उसके चलते अब दुनिया के दूसरे देशों ने भी चीन को डांटना शुरू किया।
मोहन भागवत ने चीन से टकराव के बाद भारत को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत बताई। मोहन भागवत ने कहा, हमको अधिक सजग रहने की जरूरत है। क्योंकि जो नहीं सोचा था उसने (चीन), ऐसी परिस्थिति खड़ी हो गई। इस प्रतिक्रिया में वह (चीन) क्या करेगा, नहीं पता है। इसलिए इसका उपाय क्या है। सतत सावधानी, सजगता और तैयारी। मोहन भागवत ने चीन को रोकने के लिए भारत को सामरिक और आर्थिक के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में उससे शक्तिशाली बनने पर जोर दिया।
मोहन भागवत ने पड़ोसी देशों के साथ संबंध और अधिक दुरुस्त करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए।
मोहन भागवत ने चीन को कड़ा संदेश देते हुए कहा, हम सभी से मित्रता चाहते हैं। वह हमारा स्वभाव है। परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह हो नहीं सकता, इतना तो अब तक ऐसा दुस्साहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए। हम दुर्बल नहीं है। उनकी गलतफहमी दूर हो गई।