टीम एब्सल्यूट ग्वालियर बारह साल पहले अस्तित्व में आई गुना जिले की बमोरी सीट पर भाजपा के उम्मीदवार और पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया का मुकाबला कांग्रेस के कन्हैयालाल अग्रवाल से है, जो 2013 से पहले भाजपा की शिवराज सरकार में मंत्री रहे। रोचक तथ्य यह है कि कन्हैया को दिग्विजय सिंह का करीबी और सिसोदिया को ज्योतिरादित्य सिंधिया का खास माना जाता है। जनता में चर्चा इस बात की है कि क्या सिंधिया की सीट में दिग्विजय सेंध लगाएंगे या दिग्विजय के गढ़ में एक सीट के साथ सिंधिया अपना दखल बरकरार रखेंगे। इन चुनावी बातों से दूर बमोरी तहसील के आदिवासी बहुल गांव गढ़ा के लोगों की अलग ही चिंता है। आदिवासी कोमल प्रसाद कहते हैं कि बैंकों के चक्कर लगा चुका हूं लेकिन 1000 रुपए अभी तक नहीं मिले। उनके पास सस्ता अनाज लेने की पात्रता पर्ची भी नहीं है। चतुर्भुज कुशवाहा, बाबूलाल जायसवाल आदि का व्यवस्था पर गुस्सा साफ महसूस किया जा सकता है। इनका जिक्र इसलिए क्योंकि यहां चुनावों में सहरिया-आदिवासी और दलित वर्ग ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं। सहरिया-आदिवासी और अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या लगभग 80 हजार है। क्षेत्र में पानी, सड़क, बिजली, रोजगार जैसी समस्याएं हैं। बमौरी में एक गांव सिंधिया गढ़ भी है, यहां घुमक्कड़ जातियों के करीब तीन हजार लोगों को सिंधिया स्टेट द्वारा बसाया गया था, इन्हें मुद्दों से मतलब नहीं है।
दलबदल : कौन उठाए इस मुद्दे को क्योंकि दोनों की यही कहानी
पहले जनता दल में रहे, 1998 में भाजपा में गए, 2018 में निर्दलीय उतरे और जुलाई 2020 में कांग्रेस का दामन थामने वाले अग्रवाल को लेकर दलबदल की चर्चा है तो यही बात सिसोदिया के लिए भी सामने आ रही है। सिसोदिया फरवरी 2020 तक कांग्रेस में रहे और फिर सिंधिया के साथ भाजपा के हो गए। लिहाजा 2 लाख वोटरों वाली इस सीट पर चुनाव दलबदल और मुद्दों से ज्यादा प्रतिष्ठा का है। खुद दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन व भाई लक्ष्मण सिंह सक्रिय हैं। गुना सिंधिया का संसदीय क्षेत्र है इसलिए महेंद्र सिंह समर्थकों को उनकी सक्रियता का इंतजार है।
पहले एक सीट थी गुना और बमोरी
2008 से पहले गुना व बमोरी एक सीट थी। 2003 में केएल अग्रवाल कांग्रेस के कैलाश शर्मा से 46 हजार वोटों से जीते थे। इससे पहले तीन चुनावों में उन्हें हार मिली थी। महेंद्र सिंह सिसोदिया से पिछले दो चुनाव वह बड़े अंतर से हार रहे हैं।
2008 में बमोरी नई विधानसभा सीट बनी। पहले चुनाव में भाजपा के टिकट पर कन्हैयालाल अग्रवाल ने कांग्रेस के महेंद्र सिंह सिसोदिया को 4778 वोटों से हराया। 2013 में अग्रवाल को सिसोदिया ने 18561 वोटों से शिकस्त दे दी।
2018 में भाजपा ने बृजमोहन आजाद को टिकट दिया। कांग्रेस से सिसोदिया फिर सामने थे, लेकिन अग्रवाल निर्दलीय मैदान में उतरे और 28488 वोट ले गए। इससे सिसोदिया को फायदा मिला और वे 27920 वोटों से जीत गए।