मध्य्प्रदेश में लाकडाउन के दौरान पोषण आहार वितरण की गड़बड़ी के आरोप में निलंबित दो विभागीय अफसर सिर्फ इसलिए भाल कर दिए गए क्योंकि विभाग तीन महीने के बाद भी विभाग आरोपी अफसरों के खिलाफ आरोप पात्र जारी नहीं कर पाया। वजह मामले के अनुमोदन की फ़ाइल विभागीय मंत्री 60 दिन तक रोक कर बैठी रहीं और जब फ़ाइल वापस लौटाई गयी,यब तक आरोपपत्र जारी करने की मियाद निकल चुकी थी।
मध्यप्रदेश में क्या पूरे देश के सरकारी सिस्टम में दोषियों को बचाने का एक आजमाया हुआ और सिद्धहस्त तरीका ह। इस तरीके से सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती। यानि दोषी भी साफ़ बच निकलते हैं और घोटाले भी हो जाते हैं ,लेकिन जब विभागीय मंत्री भी इस सिद्धस्त फार्मूले का इस्तेमाल करे तो बात गंभीर हो जाती है। इस मामले में विभागीय मंत्री श्रीमती इमरती देवी ने भी इस फार्मूले का इस्तेमाल किया ,लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई और उलटे वे अफसर भाल हो गए जिन्हें घोटाले के लिए जिम्मेदार मानकर निलंबित किया गया था ।
सितंबर के महीने में सूबे के खंडवा जिले के दो विभागीय अफसरों अंशुबाला मसीह और हिमानी राठौर को निलंबित किया गया था,दोनों पर हितग्राहियों को निर्धारित मात्रा से बहुत कम पोषण आहार वितरित करने का आरोप थ। दोनों ने रिकार्ड के रखरखाव में भी गड़बड़ी भी की था। इस मामले में एक संगठित गिरोह सक्रियय नजर आता ह। विभाग के प्रमुख सचिव अशोक शाह कहते हैं की निलंबन के अनुमोदन की फ़ाइल मंत्री जी के पास थी और मंत्री जी कहतीं है की फ़ाइल मुख्यमंत्री के पास थी।
सवाल ये है की झूठ कौन बोल रहा है,और क्यों बोल रहा है?क्या पोषण आहार वितरण घोटाले में जिले के अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक शामिल है?अगर नहीं है तो नौकरशाही और मंत्री जी आमने-सामने क्यों हैं। मजे की बात ये है कि नौकरशाही ने अपना दामन बचाने के लिए पोल खुलते देख बड़ी फुर्ती दिखाई ह। विभाग के उपचिव ने आरोप पात्र स्पीड पोस्ट के जरिये भेजकर कलेक्टर से उचित कार्रवाई के लिए कहा गे,जबकि आरोपपत्र भेजा ही मियाद निकलने के बाद है। जाहिर है की आरोपियों को कोई न कोई बचा रहा है ?अब कौन बचा रहा है ये जांच से ही पता चल सकता है।
हर प्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी पोषण आहार कार्यक्रम शुरू से ही घोटालों का शिकार रहा ह। कांग्रेस के शासनकाल में भी सरकारीओइ अमला और विभागीय मंत्री इसी पोषण आहार पर पालते थे और आज भी पल रहे हैं। एक जमाने में पोषण आहार बनाने के काम में करोड़ों के वारे-न्यारे हुए थे। पूरा का पूरा माफिया इसमें शामिल था। कुछ तो अखबार मालिक भी इसका हिस्सा रहे। आईएएस अधिकारियों के लिए तो पोषण आहार शुरू से स्वादिष्ट भोजन रहा है।
अब ताजा प्रसंग में सवाल ये है कि क्या सरकार में इतना नैतिक साहस है कि वो निलंबन की फ़ाइल दबाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सके ,भले ही आरोपी मंत्री हों या प्रमुख सचिव। क्या सरकार घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराए गए मैदानी अफसरों के साथ ही मंत्री तक के खिलाफ कार्रवाई कर सकेगी ? गौर तलब बात ये है कि विभागीय मंत्री इमरती देवी कांग्रेस से भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक हैं और अब मंत्री नहीं हैं क्योंकि वे उपचुनाव हार चुकी हैं।
आपको याद दिला दूँ कि पिछली साल ही तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में महिला स्व-सहायता समूहों से पोषण आहार तैयार कराने की योजना को लेकर महज 10 माह में अपना फैसला बदलना दिया था ।सरकार ने पोषण आहार बनाने का काम सातों सरकारी पोषण आहार प्लांट एमपी एग्रो (मप्र एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड) को सौंपने का निर्णय लिया था ।सरकार ने इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं, कंपनियों को फिलहाल पोषण आहार उत्पादन और सप्लाई से दूर कर दिया था । आपको बता दें कि सरकार 97 हजार 135 आंगनवाड़ियों के लिए हर माह 12 हजार मीट्रिक टन पोषण आहार खरीदती है। इसमें से करीब आठ हजार मीट्रिक टन पोषण आहार इसी माह से सरकारी प्लांट और एमपी एग्रो ने उपलब्ध करवाना शुरू किया है।
प्रदेश में पोषण आहार का घोटाला पहले भी पकड़ा जा चुका है । कुछ समय पहले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने मध्यप्रदेश में पोषण आहार मामले में बड़े घोटाले का भंडाफोड़ किया है। कैग ने बताया है कि मई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच भोपाल और रायसेन के परियोजना अधिकारियों ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लगभग 3.19 करोड़ रुपयों को कंप्यूटर ऑपरेटर्स और डेटा एंट्री ऑपरेटर्स समेत अन्य के 89 बैंक खातों में जमा करवाया है।
रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2016 से लेकर अगस्त 2018 तक भोपाल के जिला कार्यक्रम अधिकारी ने 44 बैंक खातों में 39.61 लाख रुपए गलत तरीके से जमा किए जिनमें से 23 खातों में परियोजना अधिकारियों ने भी पैसा जमा करवाया। जांच एजेंसी ने बताया कि भोपाल डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड मिल्क का भुगतान 4 लाख 73 हजार रुपए जिस तिथि को किया उसी दिन और क्रमांक से 14 लाख एक हजार रुपयों का भी भुगतान हुआ। मामले पर जब कैग ने डीपीओ से जानकारी चाही तो उन्होंने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा।
सीएजी को झाबुआ, मुरैना, विदिशा और अलीराजपुर के दस्तावेजों से पता चला है कि मानदेय का 65 लाख 72 हजार रुपए अवैध तरीके से निकाला गया है। इन रुपयों को आंगनवाड़ी सेविकाओं के नाम पर जिन बैंक खातों में जमा कराया गया है वह कर्मचारियों के परिजनों और फर्मों के नाम पर थे।कहने का आशय ये है कि पोषण आहार पर पल रहे लोगों के खिलाफ सरकार कार्रवाई का साहस आखिर क्यों नहीं करती ?सरकार अब यदि मंत्री और प्रमुख सचिव में से किसी को भी इस लापरवाही के लिए दोषी नहीं ठहराती तो मान लीजिये कि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
राकेश अचल