नई दिल्ली, | प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने सोमवार को कृषि कानूनों पर अपना रुख सख्त कर दिया और कहा कि अदालत ने तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने का मन बना लिया है, जिसके कारण दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “हमें विश्वास नहीं है कि केंद्र स्थिति को सही ढंग से संभाल रहा है।”
अटॉर्नी जनरल (एजी) ने जोर देकर कहा कि शीर्ष अदालत को जल्दबाजी में कोई आदेश पारित नहीं करना चाहिए।
इस पर प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने जवाब दिया “आपको हमें धैर्य पर व्याख्यान नहीं देना चाहिए।”
चार वरिष्ठ वकील – दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, एच. एस. फुल्का और कॉलिन गोंसाल्वेस शीर्ष अदालत के समक्ष आठ किसान यूनियनों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने इन वकीलों से कहा कि वे प्रदर्शनकारी बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को वापस घर जाने के लिए कहें।
यह जानने के बाद कि वे वापस जाने के इच्छुक नहीं हैं, प्रधान न्यायाधीश ने किसानों के वकीलों से कहा, “मैं एक जोखिम ले रहा हूं और एक व्यक्तिगत अनुरोध कर रहा हूं। कृपया इस संदेश को व्यक्त कीजिए।”
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने संकेत दिया है कि वह सोमवार को इस मामले पर कुछ फैसला सुना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि केंद्र को फिलहाल इन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा देनी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने कृषि कानूनों की जांच के लिए एक समिति के गठन के उद्देश्य से पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नाम सुझाए जाने को भी कहा, जो संभवत इस समिति में शामिल हो सकते हैं। यह समिति यह निर्धारित करेगी कि किसानों के लिए क्या प्रावधान अच्छे हो सकते हैं और उन्हें किन प्रावधानों से नुकसान हो सकता है। इसके बाद दवे ने न्यायमूर्ति आर. एम. लोढा का नाम सुझाया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति पी. एस. सतशिवम से बात की थी, लेकिन वह हिंदी में अच्छे नहीं है, जिस कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।