किसानों ने केंद्र का प्रस्ताव सर्वसम्मति से खारिज किया, आंदोलन जारी रखेंगे

किसानों ने केंद्र का प्रस्ताव सर्वसम्मति से खारिज किया, आंदोलन जारी रखेंगे

नई दिल्ली, | नए कृषि कानूनों पर किसानों का आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। कई दौर की बैठकें बेनतीजा रहने के बाद किसानों ने सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया है। सरकार ने किसानों को लिखित प्रस्ताव भेजा था, लेकिन किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और उनका कहना है कि आंदोलन अभी जारी रहेगा।

सरकार ने किसानों की कुछ प्रमुख मांगों पर सहमति जताते हुए उन्हें लिखित मसौदा प्रस्ताव भेजा था, जिसमें तीन विवादास्पद कृषि कानूनों में संशोधन करने की बात भी शामिल थी, जो आंदोलनरत किसानों की सबसे बड़ी मांगों में से एक रही है।

सरकार ने किसानों के सामने एक लिखित मसौदा प्रस्ताव के माध्यम से अपना पक्ष रखा था, जिसमें उसने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) के संबंध में दो मुख्य संशोधनों पर सहमति व्यक्त की थी। हालांकि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसानों की सबसे बड़ी मांग को खारिज कर दिया था।

किसान नेताओं में से एक कुलवंत सिंह संधू ने कहा, “हमने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। हमारी भविष्य की कार्रवाई यह है कि हम एक-दो दिनों में सभी सीमाओं को बंद कर देंगे।”

किसान आंदोलन के 14वें दिन सिंघु बॉर्डर पर सरकार ने किसानों की सबसे बड़ी मांग में से एक एमएसपी पर लिखित में गारंटी देने का प्रस्ताव भेजा था। प्रस्ताव में केंद्र ने एक लिखित न्यूनतम समर्थन मूल्य आश्वासन और एपीएमसी के लिए एक समान कर के लिए सहमति व्यक्त की है, जो कि राज्य सरकारों द्वारा स्थापित एक विपणन बोर्ड है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसानों का बड़े खुदरा विक्रेताओं की ओर से शोषण न हो।

प्रस्ताव में कहा गया है कि निजी व्यापारियों के लिए व्यापार करने को लेकर पंजीकरण का प्रावधान होगा।

कृषि कानूनों को खत्म करने के मुद्दे पर, सरकार ने कहा कि वह उन कानूनों के प्रावधानों पर विचार करने के लिए तैयार है, जिन पर किसानों ने आपत्तियां जताई हैं।

व्यापारियों के पंजीकरण के मुद्दे पर, सरकार ने नए नियमों को लागू करने का आश्वासन दिया है, जिसके तहत राज्य सरकारों को किसानों के कल्याण के लिए नए नियमों के साथ आने के लिए अधिकार दिए जाएंगे।

सरकार ने किसानों के बीच इस आशंका को भी दूर करने का प्रयास किया है कि उनकी खेती उनसे छिन जाएगी। सरकार ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करने की बात सुनिश्चित की है। सरकार के प्रस्ताव ने स्पष्ट किया कि नए कानूनों में प्रावधान बहुत स्पष्ट हैं और अगर किसानों को अभी भी इस मुद्दे पर कोई भ्रम रहेगा, तो उन्हें और भी स्पष्ट तरीके से समझाया जाएगा।

सरकार ने एपीएमसी अधिनियम पर उस गलत धारणा को भी खारिज किया, जिसमें कहा जा रहा है कि किसान निजी मंडियों के चंगुल में फंस जाएंगे। सरकार ने एक संशोधन प्रस्तावित किया, जिसमें एक प्रावधान होगा कि राज्य सरकारें निजी मंडियों के लिए पंजीकरण नियम लागू कर सकती हैं। इसमें यह भी प्रावधान होगा कि राज्य सरकारें निजी और साथ ही एपीएमसी मंडियों में भी उपकर शुल्क की समान दर सुनिश्चित कर सकती हैं।

सरकार के प्रस्ताव में उस आरोप को भी खारिज कर दिया गया, जिसमें दावा किया जा रहा था कि बड़े उद्योगपति किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगे और किसान भूमिहीन हो जाएंगे।

सरकार ने यह भी कहा कि दीवानी अदालतों (सिविल कोर्ट) से संपर्क करने वालों को अब अनुमति दी जाएगी।

विद्युत संशोधन अधिनियम 2020 पर, सरकार ने आश्वासन दिया है कि अधिनियम को लागू नहीं किया जाएगा और पहले की प्रक्रिया को यथास्थिति बनाए रखा जाएगा।

पराली जलाने वाले मुद्दे पर सरकार ने कहा है कि वह इस विषय पर एक उचित व्यवस्था के साथ सामने आएगी।

किसान हालांकि इन कानूनों को पूरी तरह से वापस लेने की मांग कर रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।

पिछली रात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई किसान प्रतिनिधियों की बैठक के बाद किसानों को यह प्रस्ताव भेजा गया था। दोनों पक्षों की ओर से अपने मुद्दों पर अड़े रहने के कारण अब तक हुई सरकार-किसान वार्ता के पांच दौर बेनतीजा रहे हैं।

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