चंडीगढ़, आंसू गैस और पानी के बौछारों को पार करते हुए पंजाब के किसानों के एक और बड़े जत्थे ने शुक्रवार को बठिंडा-डबवाली रोड के माध्यम से हरियाणा में प्रवेश किया और दिल्ली की ओर अपने मार्च को जारी रखा। किसानों का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) एकता-उग्रहन ने किया।
इसके साथ ही किसान संघर्ष समिति से जुड़े सैकड़ों हजारों किसानों ने हरियाणा के रास्ते अमृतसर जिले के जंडियाला से दिल्ली की ओर अपनी यात्रा शुरू की।
पिछले दिन दोनों समूहों ने अपने-अपने क्षेत्रों में डेरा डाला था।
कारों और मोटरसाइकिलों के अलावा करीब 4,000 से अधिक ट्रैक्टर-ट्रेलर और लगभग 1,500 बसों की सवारी करते हुए महिलाओं और बच्चों सहित मार्च कर रहे किसानों ने हरियाणा के डबवली और जींद में अवरोधों को तोड़ने के बाद दिल्ली की ओर मार्च करना शुरू कर दिया।
अधिकांशत: युवाओं से लैस किसानों की एक एडवांस टीम 10-15 किलोमीटर लंबी रैली का नेतृत्व कर रही है, ताकि पुलिस द्वारा खड़े किए गए अवरोधकों को हटाते हुए प्रदर्शनकारी बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सकें।
प्रदर्शनकारी जील सिंह ने कहा, “हरियाणा पुलिस द्वारा पानी के बौछारों के बावजूद हमने सीमा पर एक मल्टी-लेयर पुलिस बैरिकेड तोड़ने में कामयाबी हासिल की।”
इससे पहले दिन में पंजाब और हरियाणा के किसानों के एक बड़े समूह ने पानीपत से अपना ‘दिल्ली चलो’ मार्च जारी रखा और लगभग राष्ट्रीय राजधानी पहुंच गए। हरियाणा के जरिए राजधानी आने के दौरान स्थानीय किसान भी रैली में शामिल हुए।
विरोध-प्रदर्शन के बीच किसानों की बड़ी संख्या को खिलाने के लिए विशेष समितियों द्वारा ‘लंगर’ की तैयारी की जा रही है।
एकजुटता व्यक्त करते हुए, किसानों को पंजाब और हरियाणा के गांवों से सुबह हजारों लीटर दूध दिया गया है।
एक प्रदर्शनकर्ता रजिंदर कौर ने कहा, “दिल्ली में कम से कम दो महीने तक प्रदर्शनकारियों का समर्थन करने के लिए हमारे पास पर्याप्त राशन है।”
हरियाणा में सभी प्रवेश बिंदुओं पर रैपिड एक्शन फोर्स सहित पुलिस की एक विशाल टुकड़ी तैनात की गई है, जबकि पंजाब-हरियाणा सीमा पर कई शहरों के निवासियों को सुरक्षा बलों की भारी तैनाती और बसों के न चलने से काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।
ये किसान 33 संगठनों से जुड़े हैं और संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा हैं, जो विरोध प्रदर्शन में भाग लेंगे।
कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने आशंका व्यक्त की है कि ये कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली के निराकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जिससे वे बड़े कॉरपोरेट संस्थानों की दया पर जिएंगे।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर दोहराया कि प्रदर्शनकारी किसानों की आवाज को अनिश्चित काल के लिए नहीं दबाया जा सकता है और केंद्र को उनसे बातचीत शुरू करनी चाहिए।
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने अमरिंदर सिंह के हवाले से एक ट्वीट कर कहा, “किसानों की आवाज को अनिश्चितकाल के लिए हल्के में नहीं लिया जा सकता है। दिल्ली की सीमाओं पर तनावपूर्ण स्थिति को टालने के लिए केंद्र को तुरंत किसान यूनियन नेताओं के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “जब स्थिति हाथ से बाहर हो रही है, तो 3 दिसंबर तक इंतजार क्यों करें?”
कई ट्वीट्स में मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार को आश्वस्त एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के लिए किसानों की मांग को स्वीकार करते हुए राज्य-कौशल दिखाने की आवश्यकता है, क्योंकि एमएसपी हर किसान का मूल अधिकार है।
उन्होंने कहा, “यदि वे मौखिक आश्वासन दे सकते हैं तो मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि वे इसे भारत सरकार का कानूनी दायित्व क्यों नहीं बना सकते।”
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, “यह दावा करना कि कांग्रेस किसानों को उकसा रही है, तो उन्हें देशभर से दिल्ली में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे लाखों किसानों को देखना चाहिए। यह उनके जीवन और आजीविका के लिए एक लड़ाई है और उन्हें किसी भी समर्थन या उकसावे की आवश्यकता नहीं है।”