प्रभात का कभी सूर्यास्‍त नहीं हो सकता

(लेखक – लोकेन्‍द्र पाराशरस)मनुष्‍य जब अस्तित्‍व में आता है, तो उसकी प्रारंभिक पहचान उसकी देह से होती है। सामान्‍य व्‍यक्ति इसी देह के साथ ही

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