खेती लाभकारी बनी तो रुकेगा युवाओं का पलायन

देविंदर शर्मा

पिछले 10 वर्षों में ग्रामीण मज़दूरी स्थिर है या घटती रही है, और खेती घाटे का सौदा बनी हुई है। ऐसे में चुनावी नतीजों में किसानों का मोहभंग निश्चित रूप से झलकता है। सत्तासीन दल को न केवल किसानों के प्रति उपेक्षा और उदासीनता बल्कि उनके विरोध-प्रदर्शनों के समक्ष मनमानी और पुलिस दमन का भी परिणाम भुगतना पड़ा। बताते हैं कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में किसानों के प्रभाव वाले कम से कम 38 संसदीय सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की दिक्कतों को स्वीकार किया, जब उन्होंने परिणाम के बाद भाजपा मुख्यालय में विजय भाषण में कहा : ‘हम बीजों की खरीद के स्तर से लेकर बाज़ारों में बिक्री के स्तर तक कृषि को आधुनिक बनाने के कार्य को प्राथमिकता देते रहेंगे। दालों से लेकर खाद्य तेलों तक, हम अपने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार काम करेंगे।’ लेकिन आगे बढ़ने से पहले, मुझे लगता है कि पहले यह समझना ज़रूरी है कि कृषि संकट नाकाफी आधुनिकीकरण के कारण है या इसलिए है कि कृषि को जान-बूझकर दरिद्र रखा गया है। हम किसानों को गारंटीशुदा कीमत न देने के सवाल पर आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकते, ताकि पहले आजीविका के गंभीर मुद्दों पर ध्यान दिया जा सके।

इसे समझाने के लिए हरियाणा का उदाहरण दिया जा सकता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हरियाणा ने कृषि उत्पादन के मामले में प्रभावशाली प्रदर्शन करने के लिए निश्चित रूप से लंबी छलांग लगाई है। न केवल खाद्यान्न में आत्मनिर्भर होने के कारण बल्कि इसने विभिन्न कृषि जिंसों में रिकॉर्ड प्रदर्शन किया है। कई साल तक हरियाणा केंद्रीय भंडार में सरप्लस गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा योगदान करने वाला राज्य रहा है। अब भी, सेंट्रल पूल में अतिरिक्त फूड स्टॉक आपूर्ति में इसका हिस्सा 16 फीसदी है।

कई विशेषज्ञ कहेंगे कि इसका समाधान फसल विविधीकरण में है। परंतु जो बात बड़ी आसानी से नजरअंदाज कर दी जाती है वो यह कि विविधीकरण के लिए पहली जरूरत है यह यकीनी बनाना कि मुहैया कराये जा रहे विकल्पों से होने वाली शुद्ध प्राप्ति किसानों को गेहूं और धान फसल चक्र से होने वाली कमाई से कम न हो। हालांकि किसानों को गेहूं और धान पर एमएसपी मिलता है, लेकिन यह अपेक्षित लागत और लाभप्रदता के अनुरूप नहीं होता है। किसी भी हालत में पहला कदम तो स्वामीनाथन कमीशन के फॉमूले के अनुसार कीमत गारंटी यकीनी बनाना होना चाहिये।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सघन खेती की पद्धतियों के चलते कृषि कार्यों में स्थिरता का संकट है, लेकिन दशकों से कृषि आय में उतरोतर तीव्र गिरावट ने खेती को अलाभकारी बना दिया है। यह बात बड़े ही आराम से छुपा दी जाती है। हाल ही के वर्षों में हरियाणा के युवाओं में पैदा हुई प्रवास की ललक ग्रामीण परिवेश में छाये संकट का सबूत है। किसी भी गांव में चले जाइये, आपको किस्से सुनने को मिलेंगे कि विदेश के सपनों को पूरा करने के लिए जमीन बेची जा रही है। खेती से ज्यादा कुछ नहीं प्राप्त हो रहा, और शहरों में जॉब के अवसर सीमित होने के चलते किसानों के पास जमीन बेचकर अपने बच्चों को विदेश भेजने के अलावा विकल्प कम ही बचता है। यहां तक कि बच्चों को विदेश भेजने का क्रेज अनुसूचित जाति के परिवारों में भी बढ़ रहा है, जिनमें से कई ने तो बच्चों को बाहर भेजने के लिए भारी-भरकम कर्ज भी लिया है। कैथल जिले के धेरड़ू गांव के 70 वर्षीय किसान मीडिया को गर्व से बताते हैं, ‘हमारे गांव से ज्यादातर लड़के जा चुके हैं। यहां पीछे केवल उनके अभिभावक ही रहते हैं। हमारे गांव में कुल 1100 वोट हैं। और यदि सभी लोग वोट डालें तो भी 800 से अधिक नहीं बनेंगी। बाकी तो बाहर चले गये हैं।’

जगह-जगह लगे दिखाई दे रहे आइल्ट्स कोर्सेज के साइन-बोर्ड, और युवाओं को झटपट वीसा व रोजगार दिलाने को लेकर लुभाते बिलबोर्ड्स एक चिंताजनक प्रवृत्ति है। विदेश में रोजगार की ललक यहां तक है कि हरियाणा से बड़ी तादाद में उम्मीदवार युद्ध ग्रस्त इस्राइल में कम वेतन वाली नौकरियों के लिए पहुंचे, बावजूद इस जानकारी के कि वहां उनकी जान का खतरा है। यहां तक कि जान जोखिम में डालने वाली नौकरियों के लिए भी बेताबी साफ नजर आती है। निश्चित तौर पर कोई असहमत हो सकता है परंतु यह परेशान करने वाला प्रवास का रुझान पलट सकता था यदि कृषि आर्थिक तौर पर व्यवहार्य और लाभकारी उद्यम के रूप में उभर जाती। दरअसल, हर कोई कृषि में स्थिरता और आर्थिक जीवनी-शक्ति के संकट से बाहर निकलने के समाधान के तौर पर फसल विविधीकरण की बात करता है, लेकिन यह किसानों के लिए कारगर नहीं हो रहा है। भिवानी जिले के तोशाम निवासी एक टमाटर उत्पादक हैं रमेश पंघाल। वे करीब 42 एकड़ में टमाटर की खेती करते हैं जिसमें से अधिकांश जमीन ठेके पर ली गयी है। उनके द्वारा प्रदर्शित उद्यमिता के तरीके के चलते वे हरियाणा के टमाटर किंग के तौर पर विख्यात हैं।

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