मेयर की कुर्सी हथियाने के लिए घमासान, आप पार्टी और भाजपा द्वारा लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हत्या: अनिल भारद्वाज

मेयर की कुर्सी हथियाने के लिए घमासान, आप पार्टी और भाजपा द्वारा लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हत्या: अनिल भारद्वाज

नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन एवं पूर्व विधायक अनिल भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली नगर निगम चुनाव होने के दो महीने बाद भी आम आदमी पार्टी और भाजपा की सत्ता हथियाने की नूरा कुश्ती के कारण मेयर चुनाव नही हो पाने से दिल्ली नगर निगम निगम संवैधानिक संकट उत्पन्न होने जा रहा है। जिसके लिए दोनों बराबर की जिम्मेदार हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी सदन की सत्ता की अलोकतांत्रिक लड़ाई का कांग्रेस विरोध करती है।

आगे अनिल भारद्वाज ने कहा कि संशोधित डीएमसी एक्ट के तहत संवैधानिक तरीके से यदि एल्डरमैन को मेयर चुनाव में वोटिंग अधिकार है। तब आम आदमी पार्टी इसका विरोध क्यों कर रही है। यदि उन्हें अधिकार नहीं है तो आम आदमी पार्टी ने 26 जनवरी को जब सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी कि तब उन्होंने एल्डरमैन के वोटिंग अधिकार के विरोध में अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में क्यों नही रखी और बिना कारण 4 दिन पहले इन्होंने अपनी याचिका वापस क्यों ले ली। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों एक दूसरे पर पार्षदों की खरीद फरोख्त का आरोप लगा रहे हैं। जिससे यह बात सिद्ध होती है कि दोनों दल पैसे के दम पर खरीद फरोख्त में लिप्त हैं। और इनके पार्षद भी बिकने को तैयार हैं क्योंकि चुनाव से पूर्व उम्मीदवारों ने टिकट भारी रकम देकर लिए थे। उन्होंने कहा कि टिकट बेचने में आप पार्टी के लोग रंगे हाथों भी पकड़े गए थे।

अनिल भारद्वाज ने कहा कि भाजपा और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के खिलाफ सदन और सड़कों पर गुंडा गर्दी कर मेयर चुनाव नहीं होने दे रहे। जिससे निगम में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने जा रही है। क्योंकि निर्वाचित पार्षद शपथ के 30 दिनों के अंदर उन्हें अपना संम्पति ब्यौरा महापौर को देना होगा यदि 24 फरवरी तक यदि भाजपा और आम आदमी पार्टी में गतिरोध उत्पन्न रहने के कारण मेयर चुनाव नही होता है, तो कानूनी रुप से पार्षद स्वत: ही अयोग्यता का कारण बन जाऐंगे। क्योंकि 24 जनवरी को पार्षदों को शपथ दिलाई गई थी।

अंत में अनिल भारद्वाज ने कहा कि निगम चुनावों से पूर्व जहां भाजपा और आम आदमी पार्टी ने गंदगी हटाने, कूड़े के पहाड़ों को एक महीने में हटाने का वायदा किया, उसकी शुरूआत तो दूर दोनों कुर्सी की लड़ाई में उलझ रहे सदन की गरिमा को धूमिल कर रहे हैं। तीन प्रयासों में भी मेयर चुनाव नही होना लोकतांत्रिक मयार्दाओं का उलंघन है जिससे निगम में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने जा रहा है, क्योंकि इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

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