कोरोना समाधान के लिए हॉस्पिटल्स नही ईलाज बदलना है,

कोरोना समाधान के लिए हॉस्पिटल्स नही ईलाज बदलना है,

भोपाल हमे डॉक्टर्स नही उनका ज्ञान एवम सोच बदलना है,जैसे मास्क एवम दूरी केलिये सरकार कानून बनाती है,ऐसे ही भारतीय चिकित्सा इंडियन मेडिकल सिद्धांत के आधार पर,भारतीय चिकित्सा आयुर्वेद को अनिवार्य करना चाहिए,यदि अधिकांश रोगी स्वथ्य होंगे,यह मेरा अनुभव कहता है,तो सरकार को कानून बना देना चाहिए,की पहले भारतीय चिकित्सा होगी जो ICCU में काम करती है,ऑक्सीजन लैबल भी बढ़ाती है,हृदय,गुर्दे,लिवर को सुरक्षित रखती है,ब्लैक फंगस जैसा साइड दुष्प्रभावों से रहित होगा,यदि कोई नही ठीक हुआ 3दिन में लाक्षणिक परिवर्तन नही हुआ तो हमे विदेशी चिकित्सा अपनाने में कोई दुराग्रह नही है,कम से कम 80% रोगी महंगे इलाज एवम दवाओं के दुष्प्रभावों से वच सकते है,सरकार क्यों ऐसा कर रही है,किन मजबूरियों के कारण यह सब हो रहा है,??सरकार वताये पूरा देश मोदी जी मे विश्वास रखता है,क्यों आयुर्वेद के सभी साक्ष्य सभी दावे क्यों नही थोपे गए,भारतीय चिकित्सा अभियान की दवा के दावे सुने ही नही,आयुर्वेद के चिकित्सा ग्रंथो पर सरकारको विश्वास नही तो वंद करदो, भारतीय चिकित्सा महाविद्यालय,देश ऐसे ही गुलाम हुआ था,अपनो की उपेक्षा,ईर्ष्या,जलन,आयुर्वेद के सभी लोग क्यों नही करते विरोध,इस वक़्त बनो भगतसिंह,चन्द्र,सुभाष,राजगुरु,मरने के बादभी अमर रहोगे,पूरा भारत समझ गया कि अब यह देश अंग्रेजी दवाओं का गुलाम हो गया है,ऐसी परिस्थितियों में भी भारत की अमृत दिव्य औषधियों को अनदेखा कर,जहरीली विदेशी दवाइयों को थोपागया,आगे देखिए क्या दुर्दशा होती है, भारतीय शरीर किआने बाली पीढ़ी तो जन्म ही वीमारिओ के साथ लेगी,स्वथ्य संतान को कहीं आयातित न करने पड़े विदेशी शुक्राणु ??सहेज कर रख लीजिये यह भविष्यवाणी का आलेख,भारत सरकार अभी भी भारतीय परम्परागत विज्ञानको आधुनिकता के साथ उपयोग करें,प्रधानमंत्री जी मात्र मेरे साथ 3 दिन भारतीय चिकित्सा ग्रंथों का अवलोकन करले,भारत के स्वाथ्यमंत्रालय के अधिकारियों मेरे 50 vedios मेरे यूट्यूब चैनल में सुनले,आँखे खुल जाएगी,कैसा अन्याय हुआ भारतीय शरीर के साथ,और भारत के डॉक्टर समन्वित ज्ञान ,यानीब्रिटिश चिकित्सा ज्ञान के साथ भारतीय चिकित्सा कोभी पढ़ सकते थे,पर आधुनिकता की होड़ मेंभारत गुलाम हो गया विदेशी दवाओं का ,देश आपका,विद्यार्थी देश का,पैसा देश का मगर अध्ययन विदेश का मात्र फार्माकोलॉजी एवम औषधियों के भारतीय ग्रन्थ मेडिसिनल बुक्स तो पाठ्यक्रम में अनिवार्य होती,जैसे की चीन के मेडिकल कॉलेजों में है, आजादी के बाद ,सब कुछ देश मे तरक्की हुए पर अंग्रेजी दवाओं का व्यापार एक हजार गुना बढ़ा,क्या भारतीय स्वाथ्य की तरक्की मान सकते है,नेहरू जी सेलेकर मोदी जी ने कभी नही सोचा,जिस भारतीय सर्जन सुश्रुषा जी को दुनिया फादर ऑफ सर्जरी मानती में,जिन आचार्य चरक जी को फादर ऑफ मेडिसिन मानती हेउन्हें भारत सरकार नही मानती,मानती होती तो आयुर्वेद विश्व चिकित्सा होती,सब कुछ उन मनीषियों कानाम किसी और का, कोरोना में आम भारतीय समझ गया भारत सरकार की विदेशी नीतिओं को 130 करोड़ का देश,भारतीय प्रतिभाओं की उपेक्षा कसेनिरोगी रह सकता है,

English Website