आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने से झारखंड की सियासत में भी बदलेंगे समीकरण

आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने से झारखंड की सियासत में भी बदलेंगे समीकरण

रांची : कांग्रेस के सीनियर लीडर आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने से झारखंड की सियासत में भी हलचल है। आरपीएन सिंह पिछले पांच साल से झारखंड कांग्रेस के प्रभारी थे। झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जो सरकार चल रही है, उसमें कांग्रेस भी शामिल है। झारखंड कांग्रेस का प्रभारी होने के नाते उनका इस सरकार पर खासा प्रभाव रहा है। राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद का जो गठबंधन है, उसमें आरपीएन सिंह एक अहम किरदार रहे हैं। जाहिर है, उनके भाजपा में जाने से राज्य में सियासत के समीकरण भी बदलेंगे। झारखंड में कांग्रेस के कुल 18 विधायक हैं। माना जाता है कि इनमें से आठ-दस विधायक उनके सीधे प्रभाव में रहे हैं। बेशक आरपीएन सिंह फिलहाल यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से दी जाने वाली भूमिका पर फोकस करेंगे, लेकिन यूपी चुनाव निपटने के बाद पार्टी झारखंड में उनका अपने तरीके से इस्तेमाल कर सकती है। झारखंड में भाजपा सबसे ज्यादा अरसे तक सत्ता में रही है। फिलहाल वह राज्य विधानसभा की प्रमुख विपक्षी पार्टी है और सत्ता से दूर होने की उसकी कसक मौके-बेमौके सामने भी आ जाती है। झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश दो-तीन दफा कह चुके हैं कि राज्य की मौजूदा सरकार अपने कार्यकाल के पहले धराशायी हो जायेगी। इधर कांग्रेस, झामुमो और राजद के नेता भी भाजपा पर राज्य सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाते रहे हैं।

झारखंड के कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह और झामुमो विधायक रामदास सोरेन की ओर से सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाते हुए दो अलग-अलग एफआईआर भी पिछले साल दर्ज करायी गयी थी, जिनकी जांच चल रही है। इन कथित साजिशों का सच-झूठ चाहे जो भी हो, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्य में चल रही गठबंधन सरकार में शामिल घटक दलों की हर गतिविधि पर बीजेपी के रणनीतिकारों की पैनी निगाह है। कांग्रेस के कई विधायक जब-तब राज्य सरकार के कामकाज और निर्णय-अनिर्णय पर असंतोष जाहिर करते रहे हैं। ऐसे विधायकों को अगर आनेवाले दिनों में भाजपा के नये सिपहसालार आरपीएन सिंह ने प्रभावित किया तो राज्य में सत्ता समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।

झारखंड में विधानसभा के चुनाव में अभी तीन साल बाकी हैं और अगर किन्हीं वजहों से राज्य के सत्ताधारी गठबंधन में अंतर्विरोध पैदा हुआ तो भाजपा उसे अवसर की तरह भुनाने की हर तिकड़म-तरकीब आजमाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी।

आरपीएन सिंह वर्ष 2017 में झारखंड कांग्रेस के प्रभारी बनाये गये थे। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद का जो गठबंधन बना, उसमें कांग्रेस की ओर से आरपीएन सिंह ही सबसे अहम किरदार रहे। राज्य में चुनाव के बाद जब गठबंधन की सरकार बनी तो इससे आरपीएन सिंह की कांग्रेस के भीतर और बाहर साख मजबूत हुई। कांग्रेस ने झारखंड बनने के बाद अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए16 सीटें हासिल की थीं। चुनाव के बाद जेवीएम के दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव भी कांग्रेस में शामिल हो गये। इन सबमें आरपीएन सिंह की बड़ी भूमिका रही। कांग्रेस को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास कोई बात आधिकारिक तौर पर रखनी होती थी तो उसका जरिया आरपीएन सिंह ही होते थे। इस सरकार के गुण-दोष, खूबियों-खामियों से वह भलीभांति अवगत हैं। ऐसे में जाहिर है कि भाजपा आने वाले दिनों में आरपीएन सिंह की शख्सियत और उनकी इस ताकत का झारखंड में अपने तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश करेगी।

आरपीएन सिंह ने भाजपा में जाने का असर झारखंड कांग्रेस के संगठन पर भी पड़ेगा। झारखंड कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राजेश ठाकुर भी आरपीएन सिंह के विश्वस्त सिपहसालार माने जाते रहे हैं। आरपीएन सिंह के कहने पर ही उन्हें कोई छह महीने पहले प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि राजेश ठाकुर ने कहा है कि आरपीएन सिंह का भाजपा में जाना उनका निजी निर्णय है और इससे झारखंड कांग्रेस की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ठाकुर ने कहा कि उन्हें कांग्रेस छोड़कर नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी और अंबा प्रसाद ने आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इरफान अंसारी ने कहा है कि वह झारखंड में कांग्रेस को बर्बाद करने की मुहिम में लगे थे। अंबा प्रसाद ने कहा है कि वह पहले से ही बीजेपी के साथ सांठ-गांठ कर कांग्रेस-जेएमएम-राजद सरकार को अपदस्थ कराने की साजिश कर रहे थे। इधर झारखंड भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने आरपीएन सिंह का पार्टी में स्वागत किया है।

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