किसानो की जीत और मोदी की हार

किसानो की जीत और मोदी की हार

एब्सल्यूट कमेंट : योगेंद्र चतुर्वेदी

कल सुबह जब से मोदी जी ने कृषि बिल वापस लेने की बात कही तभी से मीडिया के सभी चैनल पर बस एक ही न्यूज चल रही है कि मोदी हार गये ओर किसान जीत गये। कोई बोल रहा है कि मोदी ने आने वाले चुनावों में हार के डर से बिल वापस लेने का निर्णय लिया है। सवाल ये नहीं कि कौन जीता और कौन हारा। सवाल ये है कि जब भी किसी सरकार में एक व्यक्ति निर्णय लेता है और वो अपने साथियों को भी साथ में लेकर नहीं चलता तो उसको इस तरह के निर्णय वापस लेने को मजबूर होना ही पड़ता है। मोदी जी जिस तरह से सरकार चला रहे हैं, वो व्यक्तिवादी ज्यादा प्रतीत होती है और कहीं ना कहीं साफ-साफ दिखता है कि मोदी जी व्यावसायिक घरानों के हित में या उनसे प्रभावित होकर अकेले ही निर्णय ले लेते हैं, जिसमें कई बार उनके अपने मंत्रियों को भी संज्ञान में नहीं लिया जाता, फिर पार्टी की तो बात ही छोड़ दीजिये! चाहे नोटबंदी का निर्णय हो या विदेश जाकर राफेल जैसे व्यावसायिक अनुबंध या कृषि बिल इस तरह के कई उदाहरण हैं, जिसमें मोदी जी ने सभी को दरकिनार करके अकेले ही निर्णय लेकर देश ओर पार्टी पर थोप दिये। जिससे ना देश का भला हुया ओर ना ही उनकी पार्टी का। चूँकि मोदी जी ने अपनी व्यावसायिक घरानों की मित्रता से पार्टी का कोश और पार्टी की पालक संस्था आरएसएस के सभी प्रकल्पों को इतना ज्यादा पोषित कर उनके मुँह बंद कर दिये है कि अब मोदी जी के सामने पार्टी और संगठन बौने हो गये है और मजबूरी में ही सही मोदी जी के हर निर्णय को सही साबित करने में जुट जाते है। फिर चाहे उनको जनता के बीच उनके कोपभाजन का सामना करना पड़े। अरे भाई, जब किसी भी संस्था पर कोई एक व्यक्ति इतना हावी हो जाता है तो विपक्ष को उसको तानाशाह बोलने का मौका मिलता है। वैसे दबी जुबां से पार्टी ओर संगठन के लोग भी यही बोलते है कि ये आदमी तो किसी की नहीं सुनता! और जब ये सब जमीन पर जनता को दिखता है तो जनता का चाबुक अच्छे-अच्छे की तानाशाही निकाल देता है, जिसका ताजा उदाहरण किसान आंदोलन है जिसने अब जनता के दिलो में ये बात बैठा दी की ये मोदी सरकार किसानों की दुश्मन और व्यावसायिक घरानो की पोषक है। मोदी जी को भी शायद जमीनी हालत का अन्दाज हो गया, जिससे उन्होंने अपनी जमीन बचाने के लिए फिर से एक और निर्णय बिल वापसी का ले लिया ये सोचकर कि अब सब अच्छा हो जाएगा और चुनाव में इसका लाभ भी मिलेगा! लेकिन मोदी जी आज आपके बोलने पर भी किसान अपना आंदोलन वापस लेने को तेयार नहीं हंै। क्योंकि अब आप पर से उनका विश्वास ही उठ गया है और किसान इस देश के प्रधानमंत्री को, जो अभी तक आप ही है को एक झूठा इंसान बोल रहा है और बोल रहा है कि हमको मोदी जी की बात पर भरोसा नहीं है! मान्नीय मोदी जी हमारे देश के लिये ये बहुत चिंताजनक बात है कि देश के प्रधान मंत्री की बात पर भी देश की जनता विश्वास करने को तेयार नहीं है और लिखित में माँग रही है! मोदी जी ये स्थिति तो सम्माजनक नहीं है। आजादी के बाद से पहली बार देखने में आ रहा है की जनता अपने ही प्रधानमंत्री को झूठा बोल रही है ये ना आपके लिये अच्छा है ओर ना ही आपकी पार्टी के लिये! देश हित में तो कतई नहीं, बेहतर तो यही होगा कि भविष्य में आप अकेले निर्णय ना लेकर पार्टी और संगठन को साथ लेकर चलें तो शायद जनता के मन की बात भी सुन सके ना कि अपने मन की सुनाएं और फिर से शायद जनता आप पर विश्वास करने लगे! आपको सत्ता मिले या ना मिले पर इतिहास में कम से कम ये तो ना लिखा जाए की इस देश में कभी एक प्रधानमंत्री ऐसा भी था, जिसको जनता झूठा बोलती थी ओर उसकी बात पर विश्वास भी नहीं करती थी। अभी भी समय है की आने वाले समय में भूल सुधार कर प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को बढ़ाए जाने पर ध्यान दिया जाये ओर जनता में खोया हया विश्वास वापस लाया जाए, जिससे आपका नाम इतिहास में सम्माजनक तरीके से लिखा जाये। सबका विकास और सबका विश्वास साकार हो, जिससे ये देश विश्व पटल पर एक मिसाल पेश करे।
जय हिंद

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