वैश्विक नेताओं और विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति की आलोचना की

वैश्विक नेताओं और विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति की आलोचना की

ब्रसेल्स : अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति की निंदा करते हुए विश्व के नेता, राजनीतिक टिप्पणीकार और विदेशी मामलों के विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय कोरस में शामिल हो गए हैं, जिसके तहत रविवार को अचानक 20 साल की सैन्य तैनाती का अंत हो गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मन राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर ने कहा है कि अफगान सरकार के अचानक पतन और तालिबान के तेजी से अधिग्रहण ने एक स्थिर और स्थायी समुदाय बनाने के पश्चिम के प्रयासों पर लंबी छाया या परछाई डाल दी है।

स्टीनमीयर ने एक बयान में कहा, काबुल हवाई अड्डे पर निराशा के ²श्य राजनीतिक तौर पर पश्चिम के लिए शर्मनाक हैं।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में पश्चिम के वर्षों के प्रयासों की विफलता हमारी विदेश नीति और सैन्य जुड़ाव के अतीत और भविष्य के बारे में सवाल उठाती है।

इससे पहले सोमवार को, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा था कि अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय तैनाती निराशाजनक है और उन्होंने देशों से अफगानिस्तान में विफलता से सबक सीखने का आग्रह किया है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के भीतर एक जिम्मेदार और एकजुट प्रतिक्रिया का आह्वान किया है, जहां तालिबान ने सत्ता हासिल कर ली है। उन्होंने अफगानिस्तान की अस्थिरता के कारण यूरोप में अनियमित प्रवास प्रवाह के जोखिम के खिलाफ चेतावनी दी है।

मंगलवार को एक अखबार के साथ एक साक्षात्कार में, चेक राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी को कायरता और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की एक नाटकीय विफलता के रूप में वर्णित किया। इसे नाटो के भीतर अविश्वास को तेज करने की चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है।

स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ड्ट ने स्वीडिश टेलीविजन को बताया, यह काफी विनाशकारी रहा है। अफगानिस्तान को बेहतर बनाने के लिए यह 20 वर्षों से एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता रही है।

अमेरिका की वापसी को अक्षम्य बताते हुए, बिल्ड्ट ने इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह तो तैयारी की कमी है। सभी इस तथ्य से हैरान हैं कि एक या दूसरे को पता ही नहीं था कि आखिर क्या होने वाला है।

बेल्जियम के समाचार पत्र हेट लास्टे नियूव्स के साथ एक साक्षात्कार में, बेल्जियम में एंटवर्प विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर डेविड क्रिकेमैन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैन्य सैनिकों को वापस लेने में एक बड़ी गलती करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, राष्ट्रपति जो बाइडेन का सभी सैन्य बलों को वापस बुलाने का फैसला सदी के अंत के बाद से पश्चिम की सबसे बड़ी रणनीतिक गलती है।

फ्रांसीसी राष्ट्रीय दैनिक ले मोंडे ने अफगानिस्तान में गलतियों के बाद के दर्दनाक सवालों को सूचीबद्ध किया है।

इसने लिखा है, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने, 9/11 की 20वीं बरसी से पहले अफगानिस्तान से सैन्य वापसी का आदेश देकर, एक दोहरी त्रुटि को अंजाम दिया है।

इसने कहा है कि अब जब तालिबान ने काबुल पर विजय प्राप्त कर ली है और वह सत्ता का प्रयोग करेगा, तो केवल दर्दनाक प्रश्न ही बचे हैं।

अखबार ले फिगारो ने उन कांग्रेसियों के हवाले से कहा, जिन्होंने बाइडेन की वापसी की योजना बनाने में विफलता के लिए आलोचना की, अब दुनिया भर के कैमरों के सामने एक अपमानजनक विफलता देखी जा रही है।

कांग्रेसियों के हवाले से कहा गया है, यह तथ्य कि हम काबुल हवाई अड्डे के नागरिक क्षेत्र को सुरक्षित करने में भी सफल नहीं हुए, हमारी नैतिक और परिचालन कमियों के बारे में बताता है।

किंग्स कॉलेज लंदन के एक जर्मन राजनीतिक वैज्ञानिक पीटर न्यूमैन ने राष्ट्रीय प्रसारक एआरडी को बताया कि तालिबान को अक्सर एक आतंकवादी संगठन के रूप में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन स्थानीय धार्मिक और सामाजिक प्रतिष्ठान में गहराई से निहित एक पश्तो आतंकवादी के रूप में उपेक्षित किया जाता था, जिसका समर्थन हमेशा से रहा है।

नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि अफगानिस्तान में नाटो की अपनी व्यस्तता के एक ईमानदार, स्पष्ट मूल्यांकन की आवश्यकता है। उन्होंने अफगानी सरकार के पतन को काफी तेज और अचानक हुआ करार दिया।

जेम्स ने कहा, दो दशकों में हमारे काफी निवेश और बलिदान के बावजूद, पतन तेजी से और अचानक हुआ। सीखने के लिए कई सबक हैं।

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