पाकिस्तान में नए सेनाध्यक्ष का नाम घोषित होने के पहले ही उनकी नियुक्ति को कोर्ट में चुनौती देने की चर्चा जोर पकड़ गई है। कुछ कानून विशेषज्ञों ने तो यहां तक कयास लगाया है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने महसूस किया कि नियुक्त में तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है, तो वह अपनी पहल पर भी इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
पाकिस्तानी अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक सरकार और सैन्य नेतृत्व को भी इन चर्चाओं का अहसास है। इसलिए वे आपस में लगातार राय-मशविरा कर रहे हैं। इस बीच कुछ सरकार समर्थक वकीलों ने चेतावनी दी है कि सेनाध्यक्ष की नियुक्ति में कोर्ट का दखल देना असंवैधानिक कदम होगा, जिसके नुकसानदेह नतीजे हो सकते हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पहले ही दायर हो चुकी है। इसमें सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वह प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्रालय को आदेश कि वह सबसे सीनियर और अनुभवी जनरल को ही सेनाध्यक्ष नियुक्त करे। याचिका तालिब हुसैन मैकान नाम के एक वकील ने दी है। इसमें कोर्ट से यह गुजारिश भी की गई है कि वह नियुक्ति प्रक्रिया को हमेशा के लिए तय कर दे, ताकि बार-बार इस पर विवाद ना हो।
अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक गुजरे महीनों में सुप्रीम कोर्ट एक्टिविस्ट भूमिका में नजर आया। इसलिए इस बारे में अंदाजा लगा पाना मुश्किल बना हुआ है कि अगर सेनाध्यक्ष की नियुक्ति को किसी तरफ से चुनौती दी गई, तो उस पर कोर्ट का क्या रुख सामने आएगा। इस रिपोर्ट में ये बात याद दिलाई गई है कि बीते मार्च-अप्रैल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की सिफारिश पर राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था। लेकिन कोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए नेशनल असेंबली को बहाल कर दिया।