पाकिस्तान: बड़े बदलाव की तैयारी में इमरान खान, पीएम के फैसले पर भड़के पाकिस्तानी

पाकिस्तान: बड़े बदलाव की तैयारी में इमरान खान, पीएम के फैसले पर भड़के पाकिस्तानी

इस्लामाबाद। आर्थिक तंगी और कोरोना महामारी से जूझ रही पाकिस्तान की सरकार पूरे देश में एक समान शिक्षा प्रणाली लागू करने की तैयारी में है। इमरान सरकार के इस फैसले से स्कूलों और विश्वविद्यालयों का इस्लामीकरण बढ़ने की आशंका बढ़ गई है। इमरान सरकार पहले चरण में प्राइमरी स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को शामिल किया गया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की इस योजना के तहत कुरान का अनुवाद पढ़ना, नमाज और हदीस (पैगंबर मोहम्मद के उपदेश और काम) को सीखना अनिवार्य किए जाने की योजना है।

इमरान सरकार के शिक्षा प्रणाली में इस बदलाव के तहत यह भी सुनिश्चित किया जाना है कि प्रत्येक स्कूल और कॉलेज को इन विषयों को पढ़ाने के लिए हाफिज (कुरान को कंठस्थ करने वाला व्यक्ति) और कारी (कुरान पढ़ने वाला) की नियुक्त करनी है। इमरान सरकार के इस फैसले पर आलोचकों का मानना है कि नई शिक्षा प्रणाली से पाकिस्तान में इस्लामिक मौलवियों का प्रभाव और सांप्रदायिकता बढ़ेगी, जिससे सामाजिक ताने-बाने को बहुत नुकसान होगा।

कुरान के 30 चैप्टर पढ़ने जरूरी होंगे 
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामाबाद में अकादमिक क्षेत्र से जुड़े अब्दुल हमीद नैय्यर ने बताया कि नई शिक्षा प्रणाली के तहत उर्दू, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का भारी इस्लामीकरण किया गया है। उन्होंने बताया कि इस्लामिक अध्ययन के अलावा छात्रों को कुरान के 30 चैप्टर पढ़ने जरूरी होंगे। बाद में उन्हें यह पूरी किताब भी पढ़नी होगीं अब्दुल हमीद नैय्यर ने बताया कि आलोचनात्मक सोच आधुनिक ज्ञान का मूल सिद्धांत है, लेकिन सरकार पाठ्यक्रम के माध्यम से ऐसे विचारों को बढ़ावा दे रही है, जो इसके विपरीत हैं।

इस्लामी ताकतों के आगे झुका पाकिस्तान
दरअसल में वर्ष 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के बाद से सरकार और इस्लामी रूढ़िवादियों के बीच सांठगांठ हो रही है। वर्ष 1950 और 60 दशक में पाकिस्तान में इस्लामीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू हुई, लेकिन 1970 के दशक में जनरल जिया-उल-हक की तानाशाही के दौर में यह प्रक्रिया और तेज हो गई। वहीं 1980 के दशक में इसने रफ्तार पकड़ी।

बता दें कि जिया-उल-हक ने संविधान के ढांचे को बदलने के लिए एक जोरदार अभियान चलाया था। उन्होंने इस्लामिक कानून भी पेश किए, शैक्षिक पाठ्यक्रमों का इस्लामीकरण किया, देश भर में हजारों धार्मिक मदरसे खोले, इस्लामवादियों को न्यायपालिका, नौकरशाही और सेना में शामिल किया और सरकारी मामलों की देखरेख के लिए मौलवियों की अध्यक्षता में संस्थान बनाए। वर्ष 1988 में उनकी मृत्यु के बाद से लगभग सभी सरकारों ने इस्लामीकरण के माध्यम से धार्मिक ताकतों को खुश रखने की कोशिश की है।

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