डब्ल्यूएचओ को अपना राजनीतिक साधन न बनाए अमेरिका

डब्ल्यूएचओ को अपना राजनीतिक साधन न बनाए अमेरिका

बीजिंग, | अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने हाल में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अदनोम घेब्रेयियस से मुलाकात करते समय कहा कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ के चीन आदि स्थलों में वायरस की उत्पत्ति की जांच करने का समर्थन करता है। उन्होंने फिर कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस मसले पर एकजुट होना चाहिए। लेकिन हमेशा के लिए राजनीतिक साजिश करने वाला सुपर देश होने के नाते ब्लिंकन का तथाकथित समर्थन का क्या मतलब है? वे सिर्फ डब्ल्यूएचओ के सहारे चीन को बदनाम करने की कुचेष्टा कर रहे हैं। यह फिर एक बार साबित हुआ कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ को कठपुतली बनाना चाहता है।

अमेरिका डब्ल्यूएचओ में अपने प्रभाव का हरसंभव पुन:निर्माण करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ के पहले चरण की जांच की आलोचना की और अपने खास विशेषज्ञों को डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों की नामसूची में शामिल करवाना चाहता है। अमेरिका की राजनीतिक साजिश की विश्व वैज्ञानिकों की जबरदस्त निंदा की गयी। स्विस जीव-विज्ञानी विल्सन एडवर्डस ने हाल में टिप्पणी करते हुए कहा कि वैज्ञानिक जगत आशा करता है कि अमेरिका पुन: डब्ल्यएचओ में वापस लौटकर महामारी का मुकाबला करने में मदद दे सकेगा। दुर्भाग्य की बात है कि वाशिंगटन के डब्ल्यूएचओ में वापस लौटने का मकसद इस विश्व संस्था को भू-राजनीति की प्रतिस्पर्धा में धकेलना है।

डब्ल्यूएचओ पर चीन की पुन: जांच करने का दबाव बनाने के लिए अमेरिका के कई राजनेताओं ने हाल में अकसर नियमों की चर्चा की। लेकिन यह बहुत व्यंग्यपूर्ण बात है। अमेरिका के मुंह में नियम अंतर्राष्ट्रीय नियम नहीं है और अमेरिका का मापदंड भी डब्ल्यूएचओ का मापदंड भी नहीं है। विश्व महामारी-रोधी की नेतृत्व शक्ति होने के नाते डब्ल्यूएचओ को वैज्ञानिक भावना पर कायम रहकर राजनीति के सामने रियायत नहीं देनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी मिलकर अमेरिका की कुचेष्टा विफल करनी चाहिए, ताकि वैज्ञानिक जांच से सच्चाई का पता लग सके।

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