मध्यप्रदेश : काम के न काज के, ये हैं दुश्मन अनाज के

मध्यप्रदेश : काम के न काज के, ये हैं दुश्मन अनाज के

एब्सल्यूट कमेंट — गोपाल स्वरूप वाजपेयी …..
दृश्य नं. 1-. छतरपुर जिले की राजनगर तहसील के झमटुली गांव के खरीदी केंद्र पर बीते 10 दिन से बारदाना ना होने की वजह से किसानों का गेहूं खुले में रखा है। किसान गेहूं खरीदने की मांग को लेकर धरना दे रहे थे। इसी दौरान तेज बारिश आई और खुले में पड़ा सैकड़ों क्विंटल गेहूं बह गया।
दृश्य नं. 2.. रायसेन जिले के बेगमगंज में उपार्जन केन्द्रों पर सैकड़ों किसान परेशान हैं। क्योंकि केंद्रों पर हजारों क्विंटल गेहूं खुला पड़ा है। इसमें आधा गेहूं तौल के इंतजार में पड़ा है तो आधा तौल होने व बोरों में भरने के बाद परिवहन नहीं हो सका। इस दौरान आई बारिश से गेहंू बर्बाद हो गया। कई किसान ऐसे हैं जिनका गेहूं तुलाई और बोरों में सिलाई के बाद भी कंप्यूटर पर दर्ज नहीं किया गया। अब ये गेहूं भीगकर सड़ गया है।
दृश्य नं. 3.. सतना जिले के पड़रौत खरीदी केंद्र पर किसान मुनेंद्र बागरी 60 क्विंटल गेहूं लेकर 5 मई को पहुंचे। दो दिन तक खुले आसमान के नीचे अपनी बारी का इंतजार करते रहे। सात मई को तेज बारिश हुई और सारा गेहूं भीग गया। इसके बाद वह 10 मई तक खरीद केंद्र पर गेहूं खरीदने की मिन्नतें करते रहे लेकिन भीगा गेहूं खरीदने से जिम्मेदाारों ने मना कर दिया।
इस प्रकार के दृश्य मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों के खरीद केंद्रों पर बीते 6 से 18 मई तक लगातार बने। प्रदेश में बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। बारिश से किसानों का लाखों क्विंटल गेहूं सड़ गया। सिर्फ विंध्य के दो जिले सतना और रीवा में 120 करोड़ रुपए का गेहूं बर्बाद हो गया। अनाज की बर्बादी का ये आलम कोई नया नहीं है। हर साल मौसम विभाग एक सप्ताह पहले बारिश की चेतावनी जारी करता है। इस बार भी मौसम विभाग ने ताऊते चक्रवात को लेकर मध्यप्रदेश के कई जिलों में तेज बारिश की चेतावनी जारी की। लेकिन हर बार की तरह राज्य सरकार कान बंद किए रही और खरीद केंद्रों पर लाखों क्विंटल गेहूं बारिश की भेंट चढ़ गया। न सरकार के माथे पर कोई बल पड़ा है और न जिम्मेदार अधिकारी इस बर्बादी को लेकर चिंतित दिख रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी हैं। हर साल करोड़ों रुपए का लाखों क्विंटल गेहूं बारिश में नष्ट क्यों हो जाता है? क्या इस बर्बादी के लिए राज्य सरकार व संबंधित अफसर जिम्मेदार नहीं हैं? अब तक किसी अफसर के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? हर साल अनाज की इतनी व्यापक बर्बादी को रोकने के लिए कोई पहल क्यों नहीं होती? हर साल खरीद केंद्रों पर बारदाना नहीं होने की समस्या आती है, इसके बाद भी इस दिशा में काम क्यों नहीं किया जाता? क्या जानबू­ाकर लाखों क्विंटल गेहूं बारिश की भेंट चढ़ाकर सड़ाया जाता है? क्या गेहूं सड़ाने की पीछे कोई साजिश है? क्या सड़े गेहूं को शराब कंपनियों को बेचकर हर साल घोटाला किया जा रहा है? क्या सरकार का यह सरासर ­ाूठ नहीं है कि किसानों का सारा गेहूं खरीद कर भुगतान किया जाएगा? क्या खरीदे गए गेहूं के नष्ट होने पर आर्थिक क्षति प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति के खाते में नहीं आती? इन सवालों को विपक्ष के साथ ही जागरूक लोगों को सरकार से करने चाहिए। सूत्र बताते हैं फिलहाल प्रदेश में अब तक किसानों से एक करोड़ चार लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी की जा चुकी है। खरीदे गए गेहूं में से 94 लाख मीट्रिक टन गेहूं को ही गोदामों तक पहुंचाया जा सका है। एक सप्ताह पहले तक खरीदी केन्द्रों पर करीब 10 लाख मीट्रिक टन गेहूं पड़ा हुआ था। अशंका है कि इसमें से अधिकांश गेहूं बारिश की भेंट चढ़ चुका है।
वर्ष 2017 को केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने संसद में दिये जवाब में बताया था कि मध्यप्रदेश के सरकारी गोदामों में 2013-14 और 2014-15 में करीब 157 लाख टन सड़ गया था। इसकी अनुमानित कीमत 3 हजार 800 करोड़ रुपए है। दरअसल, इसकी पूरी संभावना है कि गेहूं सड़ाने की साजिश बड़े स्तर पर रची जाती है। अनाज को जान-बूझकर सड़ने दिया जाता है ताकि शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सड़े हुए अनाज खासकर गेहूं को औने-पौने दाम पर खरीद सकें। एक बात और गौर करने लायक है कि अनाज भंडारण के लिये वेयर हाउस को सरकार करोड़ों रुपए भुगतान करती है। निजी वेयर हाउस को बनाने के लिए सरकारी अनुदान भी मिलता है। परन्तु इसका अधिकतर व्यापारी इस्तेमाल करते हैं, जबकि किसानों को जरूरत होने पर वेयरहाउस वाले जगह खाली नहीं होने का हवाला देते हैं।
तो देखते जाइए– फिल्म अभी बाकी है। इस साल गेहूं को सड़ाने का ये पहला चरण है। एक माह के अंदर अभी दो बार और ऐसे दृश्य दिखाई देंगे। क्योंकि प्रदेश में जितना भी गेहूं हर रोज खरीदा जा रहा है, उससे आधा गेहूं ही परिवहन सुविधा के अभाव में गोदामों में जा पा रहा है। इसके अलावा भंडारण की समस्या बनी हुई है। प्रदेश में गेहूं खरीदने के लिए 35 लाख किसान पंजीकृत किए गए हैं। बताया जाता है कि अभी इसमें से आधे किसानों का ही गेहूं खरीदा जा सका है।

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