बदले-बदले से ‘सरकार’ क्यूं नजर आते हैं

बदले-बदले से ‘सरकार’ क्यूं नजर आते हैं


— एब्सल्यूट कमेंट —
–गोपाल स्वरूप वाजपेयी

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने चार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। उन्होंने अपने चौथे कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया है। पिछले साल की 23 मार्च को उन्होंने मध्यप्रदेश की कमान संभाली थी। अगले साल मार्च 2022 तक अगर वह इस पद पर रहे तो भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लेंगे। अभी यह रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के नाम है। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक समय (14 साल से ज्यादा) मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड शिवराज पहले ही बना चुके हैं। इस रिकॉर्ड के बनने की वजह है शिवराज की जीवनशैली व कार्यशैली। बेहद सौम्य, सरल, सहज, भावुक, मिलनसार, अहंकाररहित, सबको साधने की कला, भाषण व बयानबाजी में हमेशा सौम्यता। इन सारी खूबियों के कारण शिवराज प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता बने। लेकिन चौथे कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। जिस भाषाशैली का वह आजकल इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे आम लोगों के साथ प्रशासनिक अमला भी हैरान है।
“आजकल अपन खतरनाक मूड में हैं, मामा पूरे फॉर्म में है, टांग दूंगा… तोड़ दूंगा, गड़बड़ करने वाले को छोड़ेंगे नहीं, अपराधी सावधान हो जाएं, कोई नहीं बचेगा, माटी में मिला दूंगा, सुन लो रे माफिया जमीन में गाड़ दूंगा 10 फीट ….” ये सारे बयान उन्हीं शिवराज चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने चौथे कार्यकाल में दिए हैं, जो अपने पिछले तीन कार्यकाल के दौरान नरम छवि और बेहद भावुक अंदाज में भाषण देने के लिए जाने जाते थे। क्यों बदल गया मुख्यमंत्री शिवराज का अंदाज? क्या ये बदलाव सिर्फ भाषण तक सीमित है? क्या शिवराज सॉफ्टकोर की छवि त्यागकर हार्डकोर बनने की ओर अग्रसर हैं? क्या भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों की कार्यशैली ने उन्हें मजबूर किया है, विशेषकर पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने? क्या शिवराज सख्त प्रशासक के साथ ही हिंदूवादी छवि गढ़ रहे हैं? क्या केंद्र सरकार की कार्यशैली के दबाव में शिवराज अपनी पहचान बदलने को व्याकुल हैं? इस सवालों के साथ ही सीएम शिवराज की भाषाशैली ही नहीं, उनके फैसले व फैसले लेने के तरीके भी चर्चा में हैं।
सीएम शिवराज की छवि एक विनम्र प्रशासक की रही है, जो इफ्तार पार्टियों में जाने से भी परहेज नहीं करते थे। ईद के दिन पुराने भोपाल की गलियों में घूमकर मुस्लिम भाइयों के घर जाकर सिवइयां खाने वाला इंसान कितना बदल रहा है, कितना बदल गया है? उपचुनावों में 19 सीटें जीतने और स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बाद ऐसा लगता है कि शिवराज ने कुछ विवादास्पद मुद्दों पर कट्टर हिंदुत्व को अपना लिया है। लव जिहाद के खिलाफ कानून से लेकर पत्थरबाजी करने वालों के खिलाफ कानून बनाने की बात इसकी तस्दीक कर रही है। इन फैसलों और बयानों के बाद राजनीति के कुछ जानकार योगी और शिवराज की तुलना करने लगे हैं। अलग-अलग राज्यों में बीजेपी की सरकारें हिंदुवादी मुद्दों पर आक्रामक तरीके से काम कर रही हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि पद पर बने रहने के लिए शिवराज इस दौर में पीछे नहीं रहना चाहते। सियासत के इस दौर में स्वयं को प्रासंगिक रखने के लिए ये मजबूरी है और जरूरी भी है। लेकिन प्रकृति के सत्य को, स्वभाव को नकारा नहीं जा सकता। जो इंसान जैसा है नहीं, वैसा बनने का प्रयास करेगा तो वह भ्रमित होता रहेगा। परिणाम भी एक समय बाद अनुकूल नहीं आएंगे। इसलिए सीएम शिवराज को अपने स्वभाव, जीवनशैली, कार्यशैली, भाषाशैली की मौलिकता बरकरार रखनी चाहिए।

English Website