दमोह उपचुनाव ने छीनी 17 शिक्षकों की जिंदगी, ड्यूटी के दौरान हुआ था कोरोना

दमोह उपचुनाव ने छीनी 17 शिक्षकों की जिंदगी, ड्यूटी के दौरान हुआ था कोरोना

दमोह। देशभर में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप छाया हुआ है। इस घातक महामारी के बीच मध्यप्रदेश के दमोह में उपचुनाव कराया जाना लोगों के लिए जानलेवा साबित हो गया है। चुनाव कराने के लिए दमोह जिले के 800 शिक्षक-शिक्षिकाओं की ड्यूटी लगाई थी। इनमें से 200 शिक्षक चुनावी प्रशिक्षण लेने और इसके बाद मतदान कराने में संक्रमित हो गए। चुनाव में ड्यूटी पर लगाए गए कम से कम 17 शिक्षक, राजनेता व परिजन कोविड की चपेट में आने के बाद अपनी जान गंवा चुके हैं। इस कारण शिक्षकों के परिजनों में सरकार व प्रशासन के कारण रोष है।

दमोह में 58 वर्षीय सरकारी शिक्षक ब्रजलाल अहिरवार भी उपचुनाव की ड्यूटी पर तैनात किए गए थे, जिनकी कोरोना से मौत हो गई। उनका 25 साल का इंजीनियर बेटा अजय रोहित यही सोचता रहता है कि क्या होता, अगर वह अपने पिता को चुनाव की ड्यूटी पर जाने से रोक लेता? रोहित ने बताया, ‘मेरे पिता की इच्छा थी कि विधानसभा उपचुनाव स्थगित कर दिया जाए, लेकिन उनका यह भी मानना था कि उन्हें कोविड नहीं हो सकता क्योंकि उन्हें पीपीई किट दी गई थी।’ 17 अप्रैल को मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अहिरवार अपने काम से लौटे, दो दिन बाद बुखार हुआ और 5 मई को जिला अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। एक दिन बाद उनकी 51 वर्षीय पत्नी प्यारी बाई की भी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी भी मृत्यु हो गई। 

जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिजनों को मुआवजा
दमोह प्रशासन ने अहिरवाल को उन 17 सरकारी शिक्षकों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है, जिन्होंने उपचुनाव ड्यूटी में शामिल होने के बाद वायरस से दम तोड़ दिया। जिला कलेक्टर कृष्ण चैतन्य ने कहा, ‘हमें अब तक 24 शिक्षकों के परिजनों से आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिन्होंने चुनाव ड्यूटी पर लगाए जाने के बाद प्रथम दृष्टया कोविड के कारण दम तोड़ दिया। इनमें से छह सक्रिय रूप से उपचुनाव ड्यूटी में शामिल थे जबकि अन्य संबद्ध कार्य में लगे हुए थे। अब तक हमने 17 शिक्षकों के वायरस से मरने की पहचान की है। हम इन शिक्षकों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए चुनाव आयोग को भेजे जाने वाले अन्य आवेदनों की पुष्टि कर रहे हैं।’

क्यों पड़ी उपचुनाव की जरूरत?
गौरतलब है कि दमोह में उपचुनाव कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के पिछले अक्टूबर में भाजपा में शामिल होने के कारण हुआ था। लोधी उन 26 कांग्रेस विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने पाला बदल लिया, लेकिन उन्होंने ऐसा तब किया जब भाजपा ने राज्य में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरा दी थी। उपचुनाव से पहले दमोह में भाजपा व कांग्रेस दल के बड़े राजनेता कोरोना महामारी को ताक पर रखकर गर्मजोशी के साथ रोड शो व सार्वजनिक सभाओं को संबोधित कर रहे थे, जिसका असर बाद में देखने को मिला। 

चुनाव के प्रचार अभियान में भीड़ जुटने के कारण बढ़े कोरोना के मामले  
शहर में 1 अप्रैल को कोविड के 11 नए मामले और 116 सक्रिय मामले थे, जिनमें कोरोना के कुल 3,100 मामले थे जबकि 93 मौतें दर्ज की गई थी। वहीं, 16 अप्रैल को कोरोना के मामले बढ़कर 3,774 पर पहुंच गए। फिर भी दमोह एकमात्र ऐसा जिला था, जिसे 7 अप्रैल से शहरी क्षेत्रों में लगाए गए राज्यव्यापी कोविड प्रतिबंधों से बाहर रखा गया था। ध्यान देने वाली बात है कि मतदान के दो दिन बाद 19 अप्रैल को जिले में कोरोना महामारी के तहत प्रतिबंधों को लागू किया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि अब नेता भी कोविड पॉजिटिव होने लगे थे।

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