राखीगढ़ी में 5000 वर्ष पूर्व बसे शहर का एसएसआई को मिला साक्ष्य

राखीगढ़ी में 5000 वर्ष पूर्व बसे शहर का एसएसआई को मिला साक्ष्य

नई दिल्ली: हरियाणा का राखीगढ़ी हड़प्पाकालीन सभ्यता को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इन दिनों खुदाई कर रहा है जो इस महीने के अंत तक पूरी हो जाएगी। अब तक खुदाई व अध्ययन के बाद पता चल सका है कि यहां एक आधुनिक शहर रहा, क्योंकि मकानों के अवशेष मिले हैं साथ ही शहर को काफी प्लानिंग और तकनीक से भी बसाया गया था।

अधिकारियों ने खुदाई के दौरान हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेषों को बारीकी से देखा और उनपर अध्ययन किया, इतने वर्ष पूर्व भी हड़प्पन टाउन प्लानिंग के बड़े साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। जिनमें गलियां, पक्की दीवारें, बहुमंजिला मकान आदि शामिल हैं। वहीं 5000 साल पुरानी आभूषण बनाने की फैक्ट्री भी मिली है, इससे यह पता चलता है कि यहां से व्यापार भी किया जाता रहा है।

अधिकारियों के मुताबिक, उस वक्त एक बेहतर तकनीक इस्तेमाल कर शहर बसाए गए थे। जिन तकनीको का इस्तेमाल कर आज हम बड़े शहरों को बसाने के लिए कर रहे हैं — सीधी गालियां मिलना, पानी निकासी के लिए नाली होना, गलियों के किनारों पर पॉट रखे होना जिनका इस्तेमाल कूड़ा कचरा डालने के लिए किया जाता रहा, आदि शामिल हैं। वहीं खुदाई के दौरान दो महिलाओं के कंकाल भी मिले हैं, कंकालों के साथ उनके द्वारा इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को भी दफनाया गया है, हाथों में कंगन, गहने आदि वस्तु भी मिली है।

राखीगढ़ी, हड़प्पा संस्कृति या सिंधु सभ्यता के सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल है जो दो आधुनिक गांव राखी शाहपुर और राखी गढ़ी खास के अंतर्गत स्थित है. इसे हड़प्पा संस्कृति के प्रमुख महानगरीय केंद्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

साल 1969 में प्रोफेसर सूरजभान द्वारा किए गए अन्वेषण से यह पता चला कि राखीगढ़ी के पुरातात्विक अवशेष और बस्तियां हड़प्पा संस्कृति की प्रकृति की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं डेक्कन कॉलेज पुणे द्वारा किए गए बाद के अन्वेषण और खुदाई में पता चला यहां एक संकुल बस्ती थी और 500 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र में फैली हुई थी।

इनमें 11 अलग-अलग टीले शामिल है जिन्हें आरजीआर-1 से लेकर आरजीआर-11 नाम दिया गया है। वर्ष 1997 में 98 से 1999 के दौरान डॉ अमरेंद्र नाथ के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए कार्यों से विभिन्न पदों से प्राप्त रेडियो कार्बन तिथियों के आधार पर यहां ई पूर्व पांचवी सहस्राब्दी से ई पूर्व तीसरी सहस्राब्दी तक के समकालिक प्रारंभिक पूर्व चरण से परिपक्व हड़प्पा काल तक के सतत सन्निवेश के विभिन्न बसावटों का पता चल सका है।

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