फार्मा कंपनियों की ‘अनैतिक’ मार्केटिंग के खिलाफ याचिका पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

फार्मा कंपनियों की ‘अनैतिक’ मार्केटिंग के खिलाफ याचिका पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ अपनी डीलिंग के तहत अनैतिक विपणन प्रथाओं (मार्केटिंग प्रैक्टिस) का आरोप लगाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप ‘अत्यधिक या तर्कहीन दवाएं’ लिखी जाती हैं। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने याचिकाकर्ताओं – फेडरेशन ऑफ मेडिकल, सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख की दलीलें सुनने के बाद केंद्र को नोटिस जारी किया।

याचिकाकर्ताओं ने याचिका में फार्मास्युटिकल विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को प्रतिवादी के रूप में नामित किया है।

अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ता फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं के लगातार बढ़ते उदाहरणों के मद्देनजर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में निहित स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को लागू करने की मांग करते हैं।”

याचिका में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के साथ अपने व्यवहार में फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं के परिणामस्वरूप अत्यधिक मात्रा के साथ ही तर्कहीन दवाओं को सुझाया जाता है। इसमें कहा गया है विशेष ब्रांडों को बढ़ावा देने के लिए सुझाई गई ये दवाएं महंगी तो होती हैं, साथ ही इनसे नागरिकों के स्वास्थ्य पर भी सीधे तौर पर प्रभाव पड़ सकता है। इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि यह उचित समय है कि स्वास्थ्य के अधिकार को सुनिश्चित करने में कमी को तत्काल एक उपयुक्त कानून द्वारा भरा जाए। याचिका में कहा गया है कि ऐसे प्रचुर उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे फार्मास्युटिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार सकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों को खतरे में डालता है और मरीजों के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।

इसमें आगे कहा गया है कि चूंकि इस तरह के उल्लंघन लगातार होने वाला एक घटनाक्रम बन चुके हैं, इसलिए याचिकाकर्ता प्रार्थना करते हैं कि भारत के लोगों के स्वास्थ्य के लिए और उनके मौलिक अधिकारों के लिए ऐसी प्रथाओं को रोकने के लिए दंडात्मक परिणामों के साथ दवा उद्योग के लिए नैतिक विपणन की एक वैधानिक संहिता स्थापित की जाए।

दलील में तर्क दिया गया कि मौजूदा कोड की स्वैच्छिक प्रकृति के कारण, अनैतिक प्रथाएं बढ़ती जा रही हैं और कोविड-19 के दौरान भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं।

याचिका के अनुसार, “इसके विपरीत, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, यूके, वेनेजुएला, अर्जेंटीना, रूस, चीन, हांगकांग, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया और ताइवान सहित दुनिया भर के कई देशों ने दवा क्षेत्र में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़े कानून लागू किए हैं।”

इससे पहले 22 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों के नुस्खे में हेरफेर करने और उनके द्वारा लिखी जाने वाली दवाओं की सिफारिश करने के लिए दिए जाने वाले कथित मुफ्त उपहारों पर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें सोने के सिक्के, फ्रिज, एलसीडी टीवी, विदेशों में छुट्टियां मनाने के लिए बड़े पैकेज और अन्य वित्तीय सहायता शामिल हैं।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, शीर्ष अदालत ने माना कि कंपनियां प्रोत्साहन देने में किए गए खर्च पर कर छूट का दावा करने की हकदार नहीं हैं, बल्कि इसे उनकी आय का हिस्सा माना जाएगा।

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