नई दिल्ली: विश्लेषकों का कहना है कि मांग और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी सही समाधान नहीं है, क्योंकि उच्च कीमतें मुख्य रूप से आपूर्ति श्रृंखला से प्रभावित होती हैं। अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों के एक पैनल ने हाल ही में कहा कि 2020-21 और 2021-22 के बीच कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन के कारण वैश्विक उत्पादन और आपूर्ति प्रभावित हुई और अब रूस-यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति फिर से प्रभावित हुई है।
इन अर्थशास्त्रियों के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योग महामारी से पहले के दिनों में आपूर्ति वापस लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इसका असर भारत पर भी पड़ा है, क्योंकि यूक्रेन संकट के कारण कच्चे तेल और पाम तेल जैसी कई आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
वरिष्ठ विश्लेषक ए.आर. चौधरी ने कहा, ऐसे परि²श्य में जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो बैंक केवल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा रेपो दरों में बढ़ोतरी के पीछे अपनी उधार दरों को बढ़ाते हैं, मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने का समाधान नहीं हो सकता है।