लंदन: शोधकर्ता वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक नए ब्लड मार्कर की खोज की है! इस फायदा ग्लूकोमा के रोगियों को होगा। नया ब्लड मार्कर यह अनुमान लगा सकता है कि ग्लूकोमा के रोगियों में सामान्य उपचार के बाद भी आंखों की रोशनी जाने का कितना जोखिम है।
मालूम हो कि ग्लूकोमा भारत में 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 1.12 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह हमारे देश में अंधेपन का तीसरा आम कारण है। ग्लूकोमा के मुख्य कारक बुढ़ापा और उच्च रक्तचाप हैं। आंख में इंट्राऑकुलर दबाव को कम करने के लिए उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन वे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) और ब्रिटेन के मूरफील्ड्स आई हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने इस चीज की जांच की है कि क्या ग्लूकोमा से पीड़ित लोगों में श्वेत रक्त कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रियल कार्य कम होता है और क्या दोनों के बीच कोई संबंध है।
विषयों का अध्ययन उनके रक्त कोशिकाओं की ऑक्सीजन का उपयोग करने की दक्षता, समय के साथ खोई हुई रोशनी की मात्रा और निकोटिनामाइड एडेनाइन डाईन्यूक्लियोटाइड (एनएडी) के स्तर पर किया गया। एनएडी शरीर में मौजूद एक रसायन है जो कोशिकाओं को ऊर्जा उत्पादन में मदद करता है।