तथाकथित ‘मानवाधिकार शिक्षक’ के समाप्त होने का समय आ गया है!

तथाकथित ‘मानवाधिकार शिक्षक’ के समाप्त होने का समय आ गया है!

बीजिंग, | संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र में 8 जुलाई को ऑस्ट्रेलिया मानवाधिकार रिपोर्ट को लेकर तीसरे दौर की समीक्षा की गई। चीन, रूस, सीरिया आदि देशों और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कार्यालय के प्रतिनिधियों ने ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार उल्लंघन वाली कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की। इससे बाहरी दुनिया के सामने स्पष्ट है कि खुद को ‘मानवाधिकार शिक्षक’ की हैसियत मानते हुए ऑस्ट्रेलिया का मानवाधिकार रिकोर्ड वास्तव में एक खूनी किताब ही है। सबसे पहले इस देश के घरेलू मानवाधिकार स्थिति को देखे। पिछले कुछ सौ से अधिक सालों में ऑस्ट्रेलिया में आदिवासियों का उत्पीड़न जारी है। रूढ़िवादी अनुमानों के अनुसार, जब सन 1788 में ब्रिटिश पहली बार ऑस्ट्रेलिया पहुंचे, तो वहां लगभग 10 लाख आदिवासी लोग थे। लेकिन 20वीं सदी की शुरूआत तक, एक समय में आदिवासियों की आबादी 20 हजार से कम थी। वर्तमान में, आदिवासियों की संख्या ऑस्ट्रेलियाई आबादी का केवल 3.3 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन वे ऑस्ट्रेलियाई जेल की आबादी का 28 प्रतिशत भाग हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक कैद की गई जाति है। हालांकि, जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने ऑस्ट्रेलिया के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड की निंदा की, तो ऑस्ट्रेलियाई अधिकारी और मीडिया ने अनसुना कर दिया।

इधर के सालों में ऑस्ट्रेलियाई समाज में नस्लवाद से अंतहीन हिंसात्मक घटना पैदा होती है। ऑस्ट्रेलिया में एक नस्लवाद-विरोधी गैर-लाभकारी संगठन द्वारा किए गए शोध के अनुसार, देश में मुसलमान, चीनी मूल के लोग, और आदिवासी नस्लवादी हमलों के सबसे बड़े समूह हैं। इस संबंध में ऑस्ट्रेलियाई राजनीतिज्ञ भी अनदेखा करते हैं।

गत वर्ष नवम्बर में अफगानिस्तान में तैनात ऑस्ट्रेलियाई सेना द्वारा नागरिकों की अंधाधुंध हत्या के घोटाले का पदार्फाश किया गया। ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक जांच रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने अफगानिस्तान में हाथ अभ्यास को बहाना बनाकर 39 अफगान नागरिकों को मार डाला। 14 साल के दो लड़कों का गला काट कर नदी में फेंक दिया गया।

ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की इस डरावने वाली कार्रवाइयों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कड़ी निंदा की।

हालांकि, अपराधों के उजागर होने के बाद कुछ ऑस्ट्रेलियाई मीडिया और राजनीतिज्ञों ने बेशर्म रूप से कहा कि युद्ध-मैदान कानून के बाहर वाला स्थल है। यहां तक कि ऑस्ट्रेलियाई न्याय विभाग ने सैनिक डेविड मैकब्राइड के खिलाफ भी जवाबी कार्रवाई की है, जिन्होंने सबसे पहले ऑस्ट्रेलियाई सेना के अत्याचारों का खुलासा किया था। गंभीर युद्ध अपराध करने वाले ऑस्ट्रेलियाई सैनिक अभी भी फरार हैं। क्या यह ऑस्ट्रेलिया के कथन में मानवाधिकार है?

तथ्यों से पता चला है कि तथाकथित ‘मानवाधिकार शिक्षक’ वास्तव में मानवाधिकार का गंभीर रूप से उल्लंघन करने वाले हैं। कुछ ऑस्ट्रेलियाई राजनीतिज्ञ अपने उपर लगे काले धब्बे की अनदेखी करते हैं और दूसरे देशों में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर अफवाहें फैलाते हैं। उनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के ध्यान से बचना, अपने स्वयं के मानवाधिकारों के मुद्दों के परिसमापन से बचना और इसके द्वारा राजनीतिक लाभ हासिल करना है। उन्हें दर्पण के सामने खुद का चेहरा देखना चाहिए। इस बारे में सोचना चाहिए कि देश-विदेश में बकाया मानवाधिकार रक्त ऋण को कैसे चुकाया जाए। मानवाधिकार की आड़ में दूसरे देशों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप न करे। तथाकथित ‘मानवाधिकार शिक्षक’ के समाप्त होने का समय आ गया है !

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