अफगानिस्तान के वैज्ञानिकों को फंडिंग और शोध के नुकसान का डर

अफगानिस्तान के वैज्ञानिकों को फंडिंग और शोध के नुकसान का डर

लंदन : अफगानिस्तान में तालिबान के आगमन और अमेरिकी सेना की वापसी ने अनुसंधान वैज्ञानिकों (रिसर्च साइंटिस्ट) के बीच बहुत डर और निराशा पैदा कर दी है, जिन्होंने न केवल फंडिंग के मामले में बल्कि विज्ञान के भी बड़े नुकसान की भविष्यवाणी की है। नेचर की रिपोर्ट के अनुसार, 1996-2001 तक अपने शासनकाल के दौरान, कट्टरपंथी समूह ने इस्लामी शरिया कानून के एक रूढ़िवादी वर्जन को क्रूरता से लागू किया, जिसमें महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन शामिल था।

लेकिन 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन और 2004 में चुनी गई एक नई सरकार द्वारा उन्हें उखाड़ फेंकने के बाद, विश्व बैंक, यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट और अन्य संगठनों सहित अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग अफगानिस्तान में चली गई और वहां के विश्वविद्यालय फले-फूले।

2001 के बाद से वहां अनुसंधान में प्रगति हुई, महिला छात्रों के नामांकन के साथ-साथ कैंसर से लेकर भूविज्ञान तक के विषयों पर भी शोध में काफी वृद्धि हुई।

लेकिन अब कट्टरपंथी शासन फिर से सत्ता में आने के साथ, वैज्ञानिकों को अपने जीवन और अनुसंधान के भविष्य के लिए डर सता रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई लोग देश से बाहर भाग रहे हैं, जो अभी भी धन की कमी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में शामिल होने को लेकर उत्पीड़न के खतरे का सामना कर रहे हैं या उनके अध्ययन के क्षेत्र या उनकी जातीयता के कारण उन्हें भय सता रहा है।

समाचार रिपोटरें का दावा है कि अफगानिस्तान की सरकार के लिए विदेशी वित्त में अरबों डॉलर, जैसे कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की संपत्ति और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से क्रेडिट को फ्रीज कर दिया गया है।

काबुल पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता भूविज्ञानी हमीदुल्लाह वैजी ने कहा, भविष्य बहुत अनिश्चित है।

काबुल के कटेब विश्वविद्यालय के जन-स्वास्थ्य वैज्ञानिक अताउल्लाह अहमदी ने कहा, पिछले 20 वर्षों में हमने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे सभी बहुत जोखिम में हैं।

पिछले 20 वर्षों में, 2010 से लगभग तीन दर्जन सार्वजनिक विश्वविद्यालय स्थापित या फिर से स्थापित किए गए हैं तथा दसियों और निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में भी छात्रों की आबादी 2018 में बढ़कर 170,000 हो गई थी, जो 2001 में मात्र 8,000 होती थी और इनमें से एक चौथाई महिलाएं भी शामिल हैं।

इसके अलावा, शोध पत्रों की संख्या भी 2019 में बढ़कर 285 हो गई थी, जो 2011 में केवल 71 थी। यह आंकड़े स्कोपस के अनुसार – सहकर्मी-समीक्षित साहित्य का एक डेटाबेस, हैं।

ब्रिटेन के गिल्डफोर्ड में सरे विश्वविद्यालय में एक चिकित्सा भौतिक विज्ञानी शकरदोख्त जाफरी, जो मूल रूप से अफगानिस्तान से हैं, ने कहा कि अब विज्ञान और अनुसंधान प्रगति का ठहराव होगा।

तालिबान के डर से कई शोधकर्ता छिप गए हैं या पड़ोसी देशों में जाने की योजना बना रहे हैं। वहीं कुछ वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता विदेशों में भी शरण मांग रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले अगस्त में ही न्यूयॉर्क शहर में मानवीय संगठन स्कॉलर्स एट रिस्क (एसएआर) को अफगानिस्तान के लोगों से 500 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं।

एसएआर के निदेशक रोज एंडरसन ने कहा, अब तक, विश्व स्तर पर 164 संस्थान स्कॉलर्स की मेजबानी करने के लिए सहमत हुए हैं और एसएआर ने अमेरिका और यूरोपीय सरकारों से वीजा को फास्ट ट्रैक करने और निकासी उड़ानें जारी रखने की अपील की है।

रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, कई शोधकर्ता कह रहे हैं कि तालिबान विश्वविद्यालय प्रमुखों के साथ कक्षाओं को फिर से शुरू करने के बारे में चर्चा कर रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे सुझाव भी हैं कि महिलाओं को अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है, हालांकि तालिबान ने आदेश दिया है कि महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग पढ़ाया जाएगा और कुछ विश्वविद्यालयों ने कक्षाओं में पढ़ाई अलग-अलग शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा है।

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