रायसेन। रायसेन के अजेय दुर्ग पर स्थित प्रसिद्ध और प्राचीन सोमेश्वर धाम शिव मंदिर पर प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मेला आयोजित होगा। अपने अनूठे वैभवशाली एवं सामरिक दृष्टि से अजेय रहे ऐतिहासिक रायसेन दुर्ग में स्थित सोमेश्वर धाम से प्रसिद्ध इस प्राचीन शिव मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है। लगभग 12वीं सदी में बने इस प्राचीन मंदिर के दरवाजे (पट) साल में केवल एक बार महाशिवरात्रि पर्व पर ही खुलते हैं। इस शिव मंदिर की खासियत यह है कि सुबह उगते सूर्य की किरणें जैसे ही मंदिर पर पड़ती है, पूरा मंदिर सोने की चमक की तरह जगमगा जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व पर सुबह से ही श्रृद्धालुओं का शिव मंदिर में पहुंचना प्रारंभ हो जाता है। रायसेन सहित अन्य जिलों से भी यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्राचीन शिवलिंग के दर्शन व पूजा-अर्चना करने आते हैं। शिव मंदिर से प्राप्त भगवान गणेश, कार्तिकेय एवं नन्दी की मूर्तियों की स्थापत्य कला भी इसकी प्राचीनता को दर्शाती है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर आयोजित होने वाले मेले में सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस विभाग द्वारा इंतजाम किया जाता है। महाशिवरात्रि पर्व के अलावा भी यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में पर्यटक और श्रृद्धालु दुर्ग पर घूमने और शिव मंदिर के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। प्रशासन द्वारा यहां लोगों के लिए शुद्ध पेयजल सहित सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई है।
स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है शिव मंदिर
रायसेन दुर्ग पर स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किया गया है, जिसमें गर्भगृह, खम्बों पर आधारित मण्डप, एक लम्बा दालान और प्रवेश के लिए दयोढ़ी है। इस दयोढ़ी को सहारा देने के लिए चार वर्गाकार खम्बे लगे हुए हैं। दयोढ़ी के दरवाजों के बाहरी भागों को सुन्दर ज्यामितीय रचनाओं से सजाया गया है। द्वार के ऊपर, मध्य में भगवान गणेश की प्रतिमा उकेरी गई है। मंदिर के मण्डप का आयताकार ढांचा 32 वर्गाकार स्तम्भों पर टिका है। मण्डप के सामने एक विशाल दालान है जिसके नीचे तलघर है। मंदिर के बाहर दीवार पर शिलालेख लगा है, जिसकी लिपि देवनागरी और भाषा संस्कृत है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने खुलवाए थे मंदिर के कपाट
आजादी के बाद रायसेन दुर्ग पुरातत्व विभाग के अधीन आने के बाद सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर में प्रवेश वर्जित कर दिया गया। तब से 1974 तक मंदिर में किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता था। वर्ष 1974 में रायसेन नगर लोगों और संगठनों ने मंदिर के ताले खोलने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी ने स्वयं दुर्ग पहाड़ी स्थित मंदिर पहुंचकर ताले खुलवाए और तब से महाशिवरात्रि पर मंदिर परिसर में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाना शुरू हो गया। वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पर मंदिर को आमजन के लिए पूजा-अर्चना के ताले प्रशासन और पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में खोले जाते है।
देश के अजेय दुर्गो में होती है गणना
जिला मुख्यालय रायसेन स्थित मध्यप्रदेश में अपने अनूठे वैभवशाली एवं सामरिक दृष्टि से कभी अजेय रहे ऐतिहासिक रायसेन दुर्ग की गणना देश के महत्वपूर्ण दुर्गों में की जाती है। वैभवशाली अतीत समेटे इस प्राचीन दुर्ग को सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। रायसेन दुर्ग विंध्याचल पर्वत श्रृंखला से हटे हुए एक दुर्गम पर्वत श्रृंग की उच्चतम भुजा पर समुद्रतल से 594 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। दुर्ग के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानी दीवारें और उन चट्टानों पर ऊपर स्थित दुर्ग की पांच किलोमीटर से अधिक व्यास की चारहर दीवारी इस दुर्ग को अजेय बनाती थी। दुर्ग अपनी विशाल चाहर दीवारी के अंदर लगभग 10 किलोमीटर वर्ग क्षेत्रफल में फैला है। किले के शिव मंदिर में स्थापित कार्तिकेय, गणेश व नंदा की मूर्तियों का स्थापत्य भी इसकी प्राचीनता इंगित करता है। पहाड़ी पर स्थित इस किले तक पहुंचने के लिए तीन मार्ग हैं। पूरा किला पत्थर की उंची दो दीवारों से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से इन दीवारों पर 13 चैकियां स्थापित है। दीवार के अंदर पूरा किला मुख्यतः 8 भागों में विभक्त है। बारादरी, कचहरी, धोबी महल तथा बादल महल मुख्य हैं। यहॉं पर आकर्षक स्थापत्य कला का नमूना इत्रदान है जिसमें 10 द्वार है।