राजस्थान में हैं प्रेमियों की मुराद पूरी करने वाले इश्किया गणेश जी, ऐसा मंदिर भी जहां बाल गणेश कर रहे हैं डांस

राजस्थान में हैं प्रेमियों की मुराद पूरी करने वाले इश्किया गणेश जी, ऐसा मंदिर भी जहां बाल गणेश कर रहे हैं डांस

जयपुर। गणेश चतुर्थी के मौके पर आपको राजस्थान के कुछ ऐसे गणेश मंदिर के दर्शन करवा रहा है, जिनकी अलग ही पहचान है। इनमें से एक है जोधपुर का इश्किया गणेश मंदिर। इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी प्रेमी जोड़ा यहां दर्शन के लिए आता है, वह विवाह बंधन में बंध जाता है। इसी तरह जयपुर का गढ़ गणेश मंदिर में भगवान गणेश की बिना सूंड वाली प्रतिमा विराजमान है। सूंड नहीं होने की वजह से यहां पर गणेश की इंसानी रूप में पूजा अर्चना की जाती है।

इश्किया गणेश मंदिर, जोधपुर

जोधपुर का यह इश्किया गणेश मंदिर करीब 100 साल पुराना है। शहर की संकरी गलियों में स्थित यह मंदिर देखने में भले ही छोटा हो, लेकिन इसकी मान्यता बड़ी है। माना जाता है कि यहां पर कोई भी प्रेमी जोड़ा दर्शन के लिए लगातार आता है, तो वह विवाह बंधन में बंध जाता है। उनके विवाह में कोई अड़चन नहीं आती है। पुराने जमाने में जब प्यार और इश्क का नाम दबी जुबान में लिया जाता था। तब भी प्रेमी-प्रेमिका लोगों से नजरें बचाकर इस मंदिर में पहुंच ही जाते थे। वर्षों पहले यह मंदिर प्रेमी जोड़ों के लिए मिलने का स्थान बन गया था। तभी से इसका नाम गुरु गणपति से इश्किया गणेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इश्किया गणेश आज भी प्रेमियों के आराध्य देव बने हुए हैं। खास बात है कि प्रेमी जोड़े शादी के बाद भी यहां गणेश जी का धन्यवाद करने पहुंचते हैं।

चुंधी गणेश मंदिर, जैसलमेर

वैसे तो राजस्थान में गणेश जी के कई मंदिर है, लेकिन जैसलमेर का चुंधी गणेश मंदिर भक्तों के घर के सपने को पूरा करने के लिए काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि जो भी भक्त यहां बिखरे पत्थरों से अपना घर बनाते हैं। इसके बाद भगवान गणेश भक्तों का वैसा ही घर बनाने में मदद करते हैं। इस वजह से बड़ी संख्या में देश-दुनिया से भक्त यहां अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। ये मंदिर बरसाती नदी के बीचों-बीच बना है। बारिश में यहां मंदिर परिसर में पानी भर जाता है। ये बरसाती पानी मूर्ति को छूकर ही निकलता है। मूर्ति के बारे में यह भी मान्यता है कि प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी से पहले बारिश होती है। सभी देवता मिलकर गणेशजी का जलाभिषेक करते हैं।

नाचते बाल गणेश, चित्तौड़गढ़

राजस्थान के चित्तौड़ दुर्ग पर स्थित कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित है, बाल गोपाल गणेश जी की प्रतिमा। खास बात यह है कि महादेव जी के मंदिर में बाल गणेश जी नृत्य की मुद्रा में हैं। इस वजह से नाचते गणेशजी के दर्शन करने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। 11वीं शताब्दी में स्थापित किए गए इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह नृत्य मुद्रा वाली गणेश जी की प्रतिमा तब पहली और अपने आप में इकलौती थी। बाद में इसी प्रतिमा की तर्ज पर देशभर में नृत्य मुद्रा की प्रतिमाएं खूब तैयार हुईं। इतिहासकारों के अनुसार देश में आमतौर पर बाल गणेश के नृत्य करने की मुद्रा वाला कोई मंदिर सामने नहीं आया है।

गढ़ गणेश मंदिर, जयपुर

देश में गणेश जी के कई मंदिर हैं। इनमें एक ऐसा मंदिर भी है, जहां पर गणेश जी की इंसानी रूप में पूजा की जाती है। राजस्थान के जयपुर में गणेश जी का यह मंदिर स्थित है। इसे गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। सूंड नहीं होने की वजह से यहां पर गणेश की इंसानी रूप में पूजा अर्चना की जाती है। गढ़ गणेश मंदिर जयपुर की अरावली की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 500 मीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर में अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कराया था। इसी दौरान तांत्रिक विधि से इस मंदिर की स्थापना की गई थी। इस मंदिर में गणपति गणेश जी से सीधे अपनी मनोकामना नहीं कही जाती, बल्कि मंदिर में स्थापित दो चूहों के कान में लोगों को अपनी मनोकामना बतानी होती है।

बोहरा गणेश जी, उदयपुर

उदयपुर में भगवान गणेश के एक ऐसे रूप की पूजा होती है, जो अपने आप में अनूठा और निराला है। उदयपुर की स्थापना से पहले से ही यहां पर बोहरा गणपती विराजित है। महाराणा मोखल सिंह ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मान्यता है कि बोहरा गणेश जी अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करने के लिए उन्हें रुपए उधार दिया करते थे। भक्त अपना काम पूरा होने पर वो पैसे फिर से बोहरा गणेशजी को लौटा दिया करते थे। कई सालों तक यह क्रम जारी रहा। यही कारण है कि यहां पर भगवान गणेश को बोहरा गणेशजी के रूप पूजा जाता है, लेकिन एक भक्त ने भगवान से उधार ली गई राशि को नहीं लौटाया। इसके बाद भगवान ने प्रत्यक्ष रूप से अपने भक्तों को रुपए उधार देना बंद कर दिया था।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर

मोतीडूंगरी पहाड़ की तलहटी में स्थित भगवान गणेश का यह मंदिर न सिर्फ जयपुर और राजस्थान बल्कि देश-दुनिया के भक्तों की आस्था का केंद्र है। यहां स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 ई. में लाई गई थी। मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी। उस समय प्रतिमा 500 साल पुरानी थी। राजा-महाराजाओं के जमाने के यातायात साधनों के हिसाब से बैलों के सग्गड़ में गणेश प्रतिमा कई महीनों के सफर के बाद जयपुर पहुंची। जहां अभी मंदिर है, वहां रात्रि विश्राम के दौरान कुछ ऐसे संकेत हुए। इसमें पुजारियों ने यह धारणा बनाई कि भगवान यहीं विराजना चाहते हैं। इसके बाद गणेश को यहीं विराजमान किया गया।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथंभौर

राजस्थान के सवाई माधोपुर के पास रणथंभौर किले में गणेशजी का एक प्राचीन मंदिर है। इसे त्रिनेत्र गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में रिद्धि-सिद्धि के साथ गणेशजी की त्रिनेत्र वाली प्रतिमा है। रणथंभौर गणेशजी को हर रोज भक्तों की हजारों चिट्ठियां मिलती हैं। भक्त किसी भी शुभ काम की शुरुआत में गणेशजी को चिट्ठी भेजकर आमंत्रित करते हैं। चिट्ठी या कार्ड पर गणेश जी का पता, रणथंभौर किला, जिला सवाई माधोपुर राजस्थान लिखा जाता है और भक्त की चिट्ठी भगवान तक पहुंच जाती है। माना जाता है कि दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने युद्ध के दौरान 9 महीने से भी ज्यादा समय तक रणथंभौर किले को घेरे रखा। किले में राशन सामग्री खत्म होने लगी तब गणेशजी ने राजा हमीरदेव चौहान को सपने में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है।

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