नई दिल्ली, | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बुधवार को अदालत से कोयला घोटाला मामले में पूर्व कोयला राज्यमंत्री दिलीप रे और अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा देने की अपील की। अदालत 26 अक्टूबर को उनकी सजा पर आदेश सुनाएगी। रे वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे।
हालांकि, दोषियों ने अदालत से अनुरोध किया कि उनकी उम्र को देखते हुए उनके प्रति उदार रवैया अपानया जाए। जांच एजेंसी ने हालांकि अदालत को बताया कि समाज को एक संदेश देने के लिए अधिकतम सजा की जरूरत है, क्योंकि ‘सफेदपोश अपराध’ बढ़ रहे हैं।
उज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने 6 अक्टूबर को, उन्हें इस मामले में दोषी ठहराया था और कहा था कि इन लोगों ने कोयला ब्लॉक के आवंटन की खरीद को लेकर एक साथ साजिश रची थी।
यह मामला 1999 में कोयला मंत्रालय की 14वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के पक्ष में झारखंड के गिरिडीह जिले में 105.153 हेक्टेयर गैर-राष्ट्रीयकृत और परित्यक्त कोयला खनन क्षेत्र के आवंटन से संबंधित है।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे दिलीप रे के अलावा, कोयला मंत्रालय के दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारी – प्रदीप कुमार बनर्जी, तत्कालीन अतिरिक्त सचिव और नित्यानंद गौतम, पूर्व सलाहकार (परियोजनाएं), और कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रन माइनिंग लिमिटेड को भी दोषी पाया गया है।
विशेष न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला कि “इसमें कोई शक नहीं है कि सभी दोषियों ने एक साथ साजिश रची, ताकि कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के पक्ष में ब्रह्माडीह कोयला ब्लॉक का आवंटन प्राप्त किया जा सके।”
अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120बी (आपराधिक साजिश) 409 (आपराधिक विश्वासघात) और धारा 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के विभिन्न धाराओं के तहत अपराधों का दोषी ठहराया।
इसके अलावा, कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के महेश कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रन माइनिंग लिमिटेड को भी भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के लिए 379 (चोरी की सजा) और 34 (आम इरादे) के तहत दोषी ठहराया गया था। दोषियों को सजा पर बहस अदालत द्वारा 14 अक्टूबर को सुनी जानी थी।
मामले में 51 गवाहों की जांच की गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों ने स्पष्ट रूप से निजी पार्टियों और जन सेवकों द्वारा आपराधिक साजिश रचने की बात कही है।
सीनियर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ए.पी. सिंह ने अदालत को बताया था कि ब्रह्मडीह कोयला ब्लॉक निजी पार्टियों को आवंटित किया जाने के तौर पर पहचाना गया कैप्टिव कोल ब्लॉक नहीं था, यहां तक कि स्क्रीनिंग कमेटी भी किसी कंपनी को कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड से कम आवंटन पर विचार करने के लिए सक्षम नहीं थी।