इंदौर, | मध्य प्रदेश में माफियाओं के खिलाफ जारी अभियान में इंदौर प्रशासन ने अब तक के सबसे बड़े राशन घोटाले का खुलासा करने में कामयाबी हासिल की है। यह घोटाला कोरोना काल में हुआ है, इस विपत्ति काल में भी राशन माफिया गरीबों के हक में डाका डालने से नहीं चूके। इस मामले में खाद्य अधिकारी सहित 31 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, वहीं सरगना पुलिस भरत दवे गिरफ्त में है और तीन लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की कार्रवाई की गई है। इंदौर के जिलाधिकारी मनीष सिंह ने संवाददाता सम्मेलन में इस घोटाले के खुलासे का ब्यौरा देते हुए बताया कि, “राज्य में अत्यंत गरीब वर्ग के लोगों के लिए अंत्योदय अन्न योजना के तहत प्रतिमाह 35 किलो राशन दिए जाने का प्रावधान है और यदि परिवार में सात से ज्यादा सदस्य तो प्रति व्यक्ति पांच किलो राशन के मान से दिया जाता है, इसमें गेहूं या चावल मोटा, अनाज एक रुपए किलो की दर से साथ ही एक किलो नमक एक रुपए की दर से प्रति परिवार एक किलो शक्कर 20 रुपए किलो की दर से और केरोसीन प्रति परिवार शासन द्वारा निर्धारित मात्रा और दर पर दिया जाता है।”
उन्होंने आगे बताया कि, “कोरोना के कारण अप्रैल में इंदौर जिले के लगभग गेहूं-चावल का आवंटन प्राप्त हुआ था, इस योजना के तहत प्रति सदस्य पांच किलो गेहूं या चावल मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के हितग्राहियों को निशुल्क दिया जाना था। इस प्रकार अप्रैल से नवंबर तक प्रति हितग्राही को दोगुना राशन दिए जाने का प्रावधान था।”
जिलाधिकारी मनीष सिंह ने आगे बताया कि, “भरत दवे और प्रमोद दहीगुडे जो कि इस पूरे घोटाले के सरगना हैं और मास्टर माइंड भी, उनके सहयोग से उनके परिचितों द्वारा शासकीय उचित मूल्य दुकानों अर्थात राशन दुकानों का संचालन किया जा रहा था, जिसमें सामग्री का वितरण नहीं हुआ और अगर वितरित हुआ भी तो कम मात्रा में इसकी लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इस संबंध में 12 शासकीय उचित मूल्य की दुकानों को चिन्हित किया गया तथा इनकी जांच हेतु अनुविभागीय दंडाधिकारियों के नेतृत्व में दल भी गठित किए गए, इनके द्वारा 12 जनवरी को शासकीय उचित मूल्य दुकानों के मौका मुआयना किया गया। उनके रिकॉर्ड और पीएसओ मशीन ली गईं। साथ ही दुकानों पर उपलब्ध सामग्री का सत्यापन किया गया, इस जांच में तमाम गड़बड़ियां पाई गईं।”
उन्होंने यह बताया कि, “भौतिक सत्यापन में एक बात साफ हुई कि एक लाख 85 हजार 625 किलो गेहूं और 69 हजार 855 किलो चावल कुल मिलाकर के दो लाख 55 हजार आता था। कुल मिलाकर के यह राशन 51 हजार से ज्यादा हितग्राहियों के हिस्से का था, जिससे उन्हें वंचित रहना पड़ा। मिट्टी का तेल, नमक, शक्कर, चना, साबुत दाल, तुवर दाल इत्यादि का भी गबन किया गया। इस गड़बड़ी के कारण कोरोना जैसी विपत्ति के समय में 51 हजार परिवारों को अनाज जैसी प्राथमिक आवश्यकता से वंचित किया गया, जो ना केवल कानूनन बल्कि नैतिक रूप से भी अपराध है।”
राशन घोटाले की जांच में यह बात सामने आई है कि इसका मास्टर माइंड भरत दवे है, जो राशन दुकानों का माल बाजार में खपाता था, महत्वपूर्ण बात यह है कि राशन दुकान संचालकों में भरत के कई रिश्तेदार और करीबी हैं। वह राशन दुकान संघ का अध्यक्ष भी है, जिसके कारण उसकी दादागीरी भी खूब थी। प्रशासन को इस बात की जांच में पुष्टि हुई कि गड़बड़ी की जानकारी छोटे अधिकारियों को थी, मगर वरिष्ठ अधिकारी डराधमकाकर मामले को दबा देते थे। इतना ही नहीं इंदौर के प्रभारी फूड कंट्रोलर आर सी मीणा की भी भूमिका संदिग्ध रही। मीणा को इसी कारण से पूर्व में निलंबित कर दिया गया था।
मनीष सिंह ने आगे बताया कि, “प्रभारी फूड कंट्रोलर मीणा के अलावा राशन माफिया भरत दवे सहित कुल 31 लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है। वहीं भरत दवे, श्याम दवे और प्रमोद दहीगुडे के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की गई है।
इंदौर में इस रैकेट के खुलासे ने यह तो साफ कर ही दिया है कि राशन के क्षेत्र में भी माफिया सक्रिय हैं। इसके तार सिर्फ इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश में फैले हो सकते हैं। यहां के प्रशासन को एक सिरा मिल गया है और बात आगे बढ़ेगी तो कई बड़े चेहरे बेनकाव हो सकते हैं।
ज्ञात हो कि राज्य में इन दिनों तमाम माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई का दौर जारी है। शराब माफिया, मिलावटखोर से लेकर जमीन माफियाओं के खिलाफ अभियान चला हुआ है। अब राशन माफिया रैकेट का खुलासा हुआ है।