भारत हमेशा से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था रहा है और आज भी लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि अथवा कृषि सम्बंधित कार्यों में लगी हुई है। हालांकि, दुनिया में बाजरा के सबसे बड़ा उत्पादक और गेहूं और चावल के दूसरे सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, भारत खाद्य तेल की दीर्घकालिक कमी का सामना कर रहा है और आयात के माध्यम से मांग-आपूर्ति के अंतर को भरने के लिए मजबूर है।
कुछ ही दशक पहले, भारत का खाद्य तेल आयात एक वर्ष में लगभग 4 मिलियन टन था। यह आंकड़ा दशकों में तेजी से बढ़ा है और अब 14.03 मिलियन टन (31 अक्टूबर 2022 को समाप्त होने वाला तेल वर्ष) है। यह 1.57 लाख करोड़ रूपए के आयात बिल के बराबर है, जो कीमती विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी का कारण बनता है।
ऐसी आयात निर्भरता गंभीर मुद्रास्फीति संकट की ओर ले जाती है जैसा कि हाल की वैश्विक घाटे से देखा गया है और जिसके कारण खाद्य तेल की कीमतें आम लोगों के लिए लगभग पहुंच से बाहर हो गई थीं।