लखनऊ: देश-दुनियां में अपनी रेशमी साड़ियों के लिए विख्यात वाराणसी के सिल्क एक्सचेंज को अब बिचौलियों से मुक्ति मिलने जा रही है। वजह यूपी सरकार अब इसे इंट्रीग्रेटेड सिल्क कॉम्प्लेक्स के रूप में विकसित करेगी। इसकी स्थापना से वाजिब दाम में शुद्ध रेशमी धागा मिलने से उत्पाद की लागत तो घटेगी ही, गुणवत्ता भी सुधरेगी। ओडीओपी योजना (एक जिला एक उत्पाद) के तहत होने वाले इस काम में लगभग आठ करोड़ रुपये की लागत आएगी। उत्तर प्रदेश में रेशम उद्योग की अपार संभावनाएं हैं। सिर्फ वाराणसी और मुबारकपुर में रेशमी धागों की सालाना खपत करीब 3,000 मीट्रिक टन है। सिर्फ वाराणसी में करीब 7,000 हैंडलूम एवं 800 पॉवरलूम हैं। खपत के मात्र एक फीसद हिस्से की आपूर्ति प्रदेश से होती है। बाकी करीब 1800 मीट्रिक टन धागा चीन, जापान, वियतनाम, कर्नाटक और पश्चिमी बंगाल से आता है। इस पूरे कारोबार में बिचौलिए हाबी हैं। लिहाजा पूरे कारोबार का मोटा मुनाफा उनके हिस्से में आता है। गुणवत्ता की भी कोई गारंटी नहीं रहती। ऐसे में तैयार माल की लागत तो अधिक आती ही है। गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। इंट्रीग्रेटेड सिल्क कॉम्प्लेक्स खुल जाने से यह समस्या खत्म हो जाएगी।
करीब एक एकड़ में 2010-2011 में स्थापित सिल्क एक्सचेंज में प्रशासनिक भवन, नीलामी हाल, स्टोर, टेस्टिंग एवं मीटिंग हाल हैं। सिल्क एक्सचेंज में इसके अलावा धागों की शुद्धता की परख के लिए अत्याधुनिक लैब, तैयार माल के बिक्रय के लिए स्टॉल्स भी उपलब्ध होंगे। ये बुनकरों को किराये पर दिए जाएंगे। सरकार इसमें बुनकरों की मांग के अनुसार प्रदेश के अलावा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं पश्चिमी बंगाल से धागे उपलब्ध कराएगी। कर्नाटक सिल्क मार्केटिंग बोर्ड अपना एक काउंटर भी खोलेगा। इस बाबत सारी फॉरमैलिटीज पूरी हो चुकी हैं।