—– टिपण्णी : गोपाल स्वरुप वाजपेयी —
सीधी जिले के रामपुर नैकिया में नहर में बस गिरी। हादसे में 51 यात्रियों की जलसमाधिहो गई, चार लापता हैं। जिसने भी यह खबर सुनी, वह अंदर तक हिल गया। लेकिन, क्या आपको लगता है कि हादसे के लिए प्रत्यक्ष और अत्पयक्ष रूप से जिम्मेदार नेताओं व अफसरों को रत्तीभर भी रंज है। सारा रंज सिर्फ बयानों में दिख रहा है। हादसे के बाद जिम्मेदारों की दो दिन की गतिविधियां देखकर यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सियासत के रंग में रंगने के बाद इंसान कितना निर्मम हो जाता है। निर्ममता व बेशर्मी का आलम यह है कि प्रदेश में मौत का सैलाब आने के चार घंंटे बाद शिवराज सरकार के कई मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता भोपाल में आयोजित सामूहिक भोज में भाग लेते हैं, ठहाके लगाते हैं। किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखाई दे रही है। हादसे की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री ने सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए थे। क्या सामूहिक भोज को नहीं टाला जा सकता था? मन, कर्म व वचन में मानवता नहीं है, लोकलाज को भी किनारे रख दिया। जबकि इस हादसे का कारण, लापरवाही और जिम्मेदार कौन हंै? इसे एक अदना सा इंसान भी बता सकता है। यह भी बेहद हास्यास्पद यह है कि कार्रवाई के नाम पर परिवहन मंत्री समेत सभी बस का परमिट रद्द करने का हवाला दे रहे हैं।
गजब यह है कि इतना भयावह हादसा होने के 48 घंटे बाद तक यह तय नहीं कर पाए कि जिम्मेदार कौन है? किस पर, क्या कार्रवाई की जाए? जाहिर है, सरकार व प्रशासन के नुमाइंदे भी सब जानते हंै। फिर भी हम सब इतने बेबस क्यो हैं? क्योंकि जिनके हाथ में सारी व्यवस्था की लगाम है, वे बस में यात्रा नहीं करते। सीधी बस हादसे ने बस से यात्रा करने वालों की सुरक्षा को लेकर एक फिर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। जो बस हादसे की शिकार हुई, वह 32 सीटर थी। उसमें 32 लोगों की जगह 60 लोगों को ठूंस-ठूंसकर भरा गया। ऐसे में मध्य प्रदेश परिवहन विभाग सहित अन्य जिम्मेदारों पर सवाल उठने लाजिमी हैं। क्या सड़कों पर दौड़ रही बसों की चेकिंग नहीं की जाती? क्या बसों का फिटनेट टेस्ट नियमित तौर पर किया जाता है? क्या बस संचालक बेखौफ हैं? क्या बेखौफ होेने की वजह सत्ता तक घुसपैठ है या हफ्ते के रूप में दी जाने वाली मोटी रकम? नियम के विपरीत 32 सीटर बसों को 75 किमी से बड़े रूट का परमिट कैसे जारी हो जाता है? सीधी बस हादसे का शिकार हुई बस भी इसी क्षमता की थी, लेकिन वह सीधी से सतना के बीच 138 किमी का सफर तय कर रही थी। प्रदेश में छोटे-मोटे सड़क मार्ग की क्या बात करें! प्रदेश के राजमार्गों पर ओवरलोडिंग, बगैर फिटनेस, बगैर परमिट, बगैर बीमा, क्षमता से अधिक यात्रियों को पशुओं की भांति ठूंस-ठूंसकर भरना, बगैर स्पीड गवर्नर की बसें धड़ल्ले से दौड़ रही हैं। यह तस्वीर मध्यप्रदेश की खस्ताहाल परिवहन व्यवस्था को बयां कर रही है। यात्रियों की जान से खिलवाड़ करने की यह कहानी राज्य परिवहन निगम ठप होने के बाद शुरू हुई थी, जो अनवरत चल रही है। अब सड़क यातायात के लगभग सभी साधनों पर परिवहन माफिया का कब्जा है। कोई उम्मीद नहीं दिखती, कोई प्रयास नहीं दिखते परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने के।